पुलिस कर्मियों के चिड़चिड़े स्वभाव के लिए सरकार जिम्मेदार।

पुलिस कर्मियों के चिड़चिड़े स्वभाव के लिए सरकार जिम्मेदार।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण की तरह राजस्थान में पुलिस कर्मियों की ड्यूटी और सुविधा देने के मामले में सीएम गहलोत फैसला करें। 

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राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को संवेदनशील राजनेता माना जाता है। सामान्य वर्ग के गरीब परिवारों के युवाओं को सरकारी नौकरियों में दस प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में राजस्थान सरकार ने जो फैसला लिया है उसकी देशभर में प्रशंसा हो रही है। गहलोत सरकार ने जमीन मकान आदि की सभी शर्तों को हटा कर सिर्फ आठ लाख रुपए सालाना आय का मापदंड निर्धारित किया है। यानि जिस युवा के परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपए तक है, वह दस प्रतिशत आरक्षण  का लाभ ले सकता है। चूंकि गहलोत सरकार ने केन्द्र सरकार द्वारा लगाई जटिलताओं को हटाया है, इसलिए अब पूरे देश में राजस्थान का फार्मूला लागू करने की मांग हो रही है। हालांकि ईडब्ल्यूएस वर्ग के युवाओं को आरक्षण देने का फैसला केन्द्र सरकार का है, लेकिन राजस्थान सरकार ने अपने स्तर पर निर्णय लेकर केन्द्र सरकार के नियमों में बदलाव किया है। राजस्थान के पुलिस कर्मियों का अब सीएम अशोक गहलोत से आग्रह है कि जिस केन्द्र के ईडब्ल्यूएस मामले में राहत दी गई उसी तरह केन्द्र सरकार के पुलिस अधिनियम में भी राजस्थान में बदलाव किया जाए। सीएम गहलोत ने जो संवेदनशीलता सामान्य वर्ग के गरीब परिवारों के युवाओं के लिए दिखाई है, वैसी संवेदनशीलता पुलिस कर्मियों के मामले में भी दिखाई जाए। अक्सर यह आरोप लगता है कि चौराहे पर खड़े होने वाला ट्रेफिक सिपाही या थाने पर तैनात पुलिस आम व्यक्ति से अच्छा व्यवहार नहीं करता है। पुलिस कर्मी की भाषा अमर्यादित और रुखी होती है। असल में इस चिड़चिड़े व्यवहार के लिए सरकार के नियम और व्यवस्था जिम्ममेदार है। इस अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि देश में 1861 में अंग्रेजों द्वारा बनाया पुलिस एक्ट ही लागू होता है। इस एक्ट में पुलिस कर्मियों की सुविधा का कोई ख्याल नहीं रखा गया है। अंग्रेज सरकार तो भारतीयों को कुचलने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करती थी, लेकिन अब तो देश आजाद है और पुलिस का उद्देश्य अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना है। नियमों के मुताबिक एक लाख की जनसंख्या पर 222 पुलिस कर्मियों की तैनाती होनी चाहिए, लेकिन मौजूदा समय में मात्र 144 पुलिसकर्मी नियुक्त है। यही वजह है कि पुलिस कर्मियों से दूर रहकर ड्यूटी पर माना जाता है। अपने परिवार से दूर रहकर 24 घंटे ड्यूटी देने पर पुलिसकर्मी का व्यवहार चिड़चिड़ा हो ही जाता है। ऊपर से थानाधिकारी से लेकर आईपीएस स्तर के अधिकारी बदतमीजी से पेश आते हैं। थानाधिकारी से लेकर आईपीएस तक को ढेरों सुविधाएं हैं, जबकि एक सिपाही को तबादला होने पर अपने बच्चे के अच्छे स्कूल में प्रवेश के लिए धक्के खाने पड़ते हैं। यह सही है कि आप व्यक्ति का अनुभव पुलिस के साथ खराब व्यवहार का ही होता है, लेकिन इस व्यवहार को बदलने के लिए सरकार को पुलिसकर्मियों की सुविधाओं में इजाफा करना चाहिए। पुलिस कर्मियों की समस्याओं को लेकर जोधपुर की नागरिक सुरक्षा समन्वय समिति के अध्यक्ष जयप्रकाश कुमावत ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया कि पुलिसकर्मियों को अपनी समस्याएं रखने का अधिकार भी नहीं है, इसलिए उनकी समिति पुलिस कर्मियों की समस्या और सरकार के समक्ष रख रही है। इस पत्र में निम्न समस्याओं के समाधान की मांग की गई है। इस संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नम्बर 6350151644 पर कुमावत से ली जा सकती है।
प्रमुख मांगे:
वेतन कटौती नहीं की जाये, सातवां वेतन केंद्र की तरह 1 जनवरी 2016 से दिया जाए। हार्ड ड्यूटी बेसिक की 50 प्रतिशत की जाए या 8 घंटे ड्यूटी, मैस अलाउंस कम से कम 4000 हो। मैस अलाउंस व हार्ड ड्यूटी अलाउंस इनकम टैक्स फ्री हो। कांस्टेबल ग्रेड पे 3600 हो। कांस्टेबल को थर्ड ग्रेड की श्रेणी में माना जाए। हैडकांस्टेबल को सेकंड ग्रेड की श्रेणी में माना जाए। साप्ताहिक अवकाश लागू किया जाए। सर्विस वरिष्ठता के आधार पर चार प्रमोशन दिए जाए। साईकिल भत्ते की जगह अब  3000 से 4000 रुपए पेट्रोल भत्ता दिया जाए। वर्दी, टोपी, जूते, मोजे, दरी आदि स्टोर एनाऊंस के रूप मे  1800 रुपए महावर नगद ही भुगतान किया जाए। प्रति वर्दी सिलाई भत्ता 800 रूपए और वर्दी धुलाई भत्ता 1200 रुपए मासिक हो, राज्य में पुलिस संगठन बहाल  करे ताकी पुलिस का कोई सूझाव या मांग हो तो सीधे आप या सरकार तक पहुंचाया जा सके। ट्रांसफर गृह जिले में पांच साल और अन्य जिले में तीन साल मे किया जाए। रोल कॉल व्यवस्था समाप्त किया जाए ड्यूटी चार्ट सूचना पट्ट पर अंकित की जाए। हार्ड ड्यूटी के नाम पर पुलिसकर्मियों का शारीरिक शोषण खत्म किया जाए, प्रत्येक थाने में कार्यालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नियुक्ति की जाए। हरियाणा की तर्ज पर राजस्थान पुलिस बल को रोडवेज बसों में निशुल्क यात्रा का लाभ दिया जाए। राज्य व राष्ट्रीय अवकाश के दौरान ड्यूटी करने पर अलग से एक दिन के वेतन के बराबर मानदेय दिया जाए, रोजनामचा आम प्रणाली बंद की जाए इसकी जगह हस्ताक्षर प्रणाली लागू की जाए अन्यथा आईपीएस अधिकारीयों को भी इसमें शामिल किया जाए। पुलिसकर्मी अगर मेडिकल प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें तो उसकी आवश्यक रूप से मेडिकल छुट्टियां दी जाए, पीएल और ईओएल नहीं की जावे। पुलिस लाइन में प्रत्येक रविवार को संपर्क सभा का आयोजन हो पुलिस लाइन में तथा सभी थानों में सुझाव शिकायत पेटिका लगाएं जिसमें नाम और बेल्ट नंबर लिखना अनिवार्य नहीं हो तो निडरता के साथ लोग सुझाव देगें। प्रत्येक वर्ष मार्च के महीने में राजस्थान पुलिस अकादमी में दो दिवसीय पुलिस सुधार हेतु एक सम्मेलन का आयोजन किया जाए जिसमें गृह सचिव, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, डीजीपी साहब और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विद्वान गण जनों को बुलाया जाए तथा इसका समापन मुख्यमंत्री महोदय द्वारा किया जाए इसमें कम से कम 5000 पुलिसकर्मी शामिल हो तो विभाग व सरकार मे पारदर्शिता बनी रहेगी जीससे उचित निर्णय निकलेंगे। संपूर्ण राजस्थान में पुलिस कर्मियों द्वारा बीट अधिकारी, बीट प्रभारी इत्यादि के नाम बीट में जगह-जगह दीवारों पर छपाए जाते हैं जिसका भुगतान स्वयं पुलिसकर्मी अपनी जेब से करते है इसका बजट राज्य सरकार अलग से जारी करें।
एस.पी.मित्तल) (04-11-19)
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