एनसीपी ने समय से पहले ही सरकार बनाने में असमर्थता जताई।

एनसीपी ने समय से पहले ही सरकार बनाने में असमर्थता जताई।
राज्यपाल ने सिफारिश का पत्र लिखकर राष्ट्रपति शासन लगवाया।
महाराष्ट्र में धरी रह गई जोड़ तोड़। 

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12 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आपात बैठक हुई। इस बैठक में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। असल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 12 नवम्बर को दिन में ही केन्द्रीय गृहमंत्रालय को पत्र लिख दिया था। इस पत्र को लिखने का आधार एनसीपी का पत्र रहा। एनसीपी ने दिन में ही राज्यपाल को एक पत्र लिखकर कहा कि आपने 12 नवम्बर की रात 8:30 बजे तक सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत करने का जो समय दिया है, उसे अगले अड़तालीस घंटे के लिए बढ़ा दिया जाए, क्योंकि स्थित सरकार के लिए राजनीतिक दलों से संवाद करना जरूरी है। एनसीपी के इस पत्र से साफ जाहिर था कि एनसीपी कांग्रेस और शिवसेना का गठबंधन 12 नवम्बर  की रात साढ़े 8:30 बजे सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत नहीं कर सकता है। इस पत्र के बाद ही राज्यपाल ने एनसीपी का समय बढ़ाने से इंकार करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्रालय को पत्र लिख दिया। सूत्रों की माने तो एनसीपी ने राज्यपाल को पत्र लिखने में जल्दबाजी की। जल्दबाजी की वजह से ही महाराष्ट्र में रात साढ़े आठ बजे से पहले ही राष्ट्रपति शासन का प्रस्ताव मंजूर हो गया। सूत्रोंके अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दोपहर ढाई बजे ब्राजील की यात्रा पर रवाना होना था लेकिन केन्द्रीय मंत्री मंत्रिमंडल की की बैठक की अध्यक्षता करने की वजह से ब्राजील रवाना होने में विलम्ब हुआ। अब महाराष्ट्र में जोड़तोड़ की राजनीति धरी रह गई है। माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। इसके लिए शिवसेना कांग्रेस के नेता और वरिष्ठ वकील कपित सिब्बल से सम्पर्क साधे रहे हैं। जो सकता है कि 12 नवम्बर को ही शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाए।
शिवसेना के शेर अब घाघ कांग्रेसियों और चालाक राष्ट्रवादियों के रहमों करम पर।
भले ही महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो रहा हो, लेकिन राष्ट्रपति शासन के दौरान भी सरकार बनाने के प्रयास हो सकते हैं। यह राज्यपाल पर निर्भर करता है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान सरकार बनाने के प्रयासों को कितनी गंभीरता दी जाए। राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार चाहे तो शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। राजनीतिक प्रयासों के दौरान यदि एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के सभी 154 विधायक मिल कर उद्धव ठाकरे को अपना नेता चुन लेते हैं तो उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो सकता है। यह तभी संभव है कि जब शरद पवार विशाल हृदय दिखाकर उद्धव को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करें। लेकिन घाघ कांग्रेसियों के होते हुए ऐसा संभव नहीं लग रहा है। 12 नवम्बर को एनसीपी के अजीत पवार ने कहा कि हम 11 नवम्बर को दिनभर कांग्रेस के विधायकों के समर्थन के पत्र का इंतजार करते रहे, लेकिन कांग्रेस का पत्र नहीं मिला। पवार ने यह भी स्पष्ट किया कि समर्थन वाले पत्र पर विधायक का नाम, विधानसभा क्षेत्र का नम्बर तथा हस्ताक्षर जरूरी है। मूल हस्ताक्षर वाला पत्र ही मान्य होगा। इसके बाद भी राज्यपाल चाहे तो समर्थन देने वाले विधायकों की परेड भी करवा सकते हैं। ऐसे में शिवसेना के शेर अब पूरी तरह घाघ कांग्रेसियों और चालाक राष्ट्रवादियों के रहमो करम पर हैं। शिवसेना के जो शेर कल तक भाजपा के बड़े नेताओं के सामने दहाड़ते थे वे अब 44 विधायकों वाली कांग्रेस के नेताओं के सामने बिल्ली की तरह पूछ हिला रहे हैं। जानकारों की माने तो अब कांग्रेस ने भी सत्ता में मजबूत दावेदारी जता दी है। शिवसेना ने भाजपा के सामने जो 50-50 का फार्मूला रखा था, वैसा ही फार्मूला कांग्रेस भी रख रही है। पांच वर्ष में से दो-दो वर्ष एनसीपी और शिवसेना का मुख्यमंत्री हो तथा एक वर्ष कांग्रेस का भी मुख्यमंत्री बने। अब देखना है कि घाघ और चालाक राजनेताओं के बीच शिवसेना के शेर अपनी इज्जत कैसे बचाते हैं? महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने पर सबसे ज्यादा नुकसान शिवसेना को होगा। जहां तक भाजपा का सवाल है तो राष्ट्रपति शासन में सत्ता की कमान राज्यपाल के पास ही रहेगी। यानि भाजपा तो रिमोट से सरकार का संचालन करती रहेगी। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना को अपने अपने विधायकों को एकजुट रखना मुश्किल होगा। कांग्रेस ने फिलहाल अपने विधायक कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान में भेज रखे हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कब तक महाराष्ट्र के विधायकों को छिपाए रखेंगे?
एस.पी.मित्तल) (12-11-19)
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