तो क्या शरद पवार की भाजपा के साथ मिली भगत है?

तो क्या शरद पवार की भाजपा के साथ मिली भगत है?
आखिर प्रधानमंत्री के ब्राजील दौरे से पहले राज्यपाल को पत्र क्यों लिखा?

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महाराष्ट्र की राजनीति के संदर्भ में अब कांग्रेस यह सवाल पूछ  रही है कि जब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने एनसीपी को 12 नवम्बर की रात साढ़े आठ बजे तक सरकार बनाने का दावा पेश करने का समय दिया था, तब एनसीपी ने दोपहर 12 बजे ही राज्यपाल को पत्र लिखकर समय बढ़ाने की मांग क्यों की? जबकि राज्यपाल ने शिवसेना की समय बढ़ाने की मांग खारिज कर दी थी। कांग्रेस को अब इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि राज्यपाल को पत्र लिखने से पहले शरद पवार ने भरोसे में नहीं लिया। एनसीपी के पत्र लिखने का सबसे ज्यादा सुगमता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हुई। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री की ब्राजील यात्रा को देखते हुए ही शरद पवार ने दिन में ही राज्यपाल को पत्र लिख दिया। यदि एनसीपी 12 नवम्बर को रात साढ़े आठ बजे राज्यपाल से मिल कर समय बढ़ाने की मांग करती तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन दो तीन दिन टल सकता था और इस बीच सरकार बनाने को लेकर शिवसेना और कांग्रेस में सहमति भी हो सकती थी। राज्यपाल की सिफारिश के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी आवश्यक है। मंत्रिमंडल की बैठक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ही होती है। ऐसे में प्रधानमंत्री के ब्राजील दौरे की वजह से मंत्रिमंडल की बैठक नहीं हो सकती थी। लेकिन केन्द्र सरकार की इस संवैधानिक परेशानी को शरद पवार ने हलकर दिया। 12 नवम्बर को जब दिल्ली मेंकेन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रस्ताव मंजूर हो रहा था, तब मुम्बई में राजभवन के प्रवक्ता अधिकृत तौर पर राज्यपाल की सिफारिश से इंकार कर रहे थे। प्रवक्ता का कहना था कि राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश नहीं की है। प्रवक्ता के बयान से जाहिर था कि एनसीपी का पत्र दिन में ही प्राप्त करने का निर्णय उच्च स्तर पर हुआ है। मजे की बात यह रही है कि शरद पवार मुम्बई में बैठ कर कांग्रेस के नेताओं के आने का इंतजार करते रहे। महाराष्ट्र के प्रभारी मल्लिकार्जुन खडग़े, अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल दिल्ली से खास मुम्बई आए थे। सवाल यह भी है कि जब कांग्रेस के दिग्गज शरद पवार से मुलाकात करने मुम्बई आ रहे थे तो एनसीपी ने पहले ही राज्यपाल को पत्र क्यों सौंप दिया? सब जानते है कि शरद पवार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। श्रीमती सोनिया गांधी को विदेशी मूल की बताते हुए ही पवार ने कांग्रेस से नाता तोड़ा था। 2014 में भाजपा ने विधानसभा में एनसीपी के सहयोग से बहुमत साबित किया था। शरद पवार का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सीधा संवाद है। शरद पवार की राजनीति को समझने में शिवसेना को वर्षों लग जाएंगे। शिवसेना स्वयं हिन्दुत्ववादी और कांग्रेस स्वयं को धर्म निरपेक्ष वाली पार्टी मानती है, लेकिन सत्ता के लिए दोनों आपस में मिलने को लालायित हैं। शरद पवार ने अपनी राजनीतिक चतुराई से दोनों दलों को एक्सपोज कर दिया है।  शिवसेना और कांग्रेस के नेता तर्क दे रहे हैं कि अब कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन हो सकता है, तब महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना का क्यों नहीं? अब जब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग गया है, तब सत्ता की चाबी फिर से भाजपा के पास आ गई है। अब कांग्रेस, शिवेसना और एनसीपी को अपने विधायक एकजुट रखने की चिंता है।
एस.पी.मित्तल) (13-11-19)
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