नागरिकता के मुद्दे पर भारत धर्मशाला जैसा भी नहीं रहेगा।

नागरिकता के मुद्दे पर भारत धर्मशाला जैसा भी नहीं रहेगा।
अब एनपीआर यानि जनसंख्या रजिस्टर का भी विरोध।
आखिर विरोध करने वाले चाहते क्या हैं?

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जब किसी देश या संस्था की स्थिति खराब होती है तो उसे धर्मशाला की संज्ञा दी जाती है। यानि यहां पर कोई कायदा कानून नहीं है, जिसकी मर्जी हो वह आ जाए और जिसकी मर्जी हो वह चला जाए। दुनिया भर में भारत अकेला देश होगा, जहां नागरिकता का कोई महत्त्व नहीं है, इसलिए अब एनपीआर यानि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर कार्यक्रम का भी विरोध किया जा रहा है। सरकार की लाचारी और बेबसी इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि एनपीआर की घोषणा से पहले सफाई देनी पड़ रही है कि इसका संबंध एनसीआर यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडिया सिटीजंस से नहीं है। श्रीमती सोनिया गांधी, सुश्री ममता बनर्जी, अससुद्दीन औवेसी और वामपंथियों का इतना डर और दबाव है कि सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि एनपीआर के विवरण अथवा जानकारी का उपयोग नागरिकता पहचान के लिए नहीं होगा। जो व्यक्ति जैसी जानकारी देगा, उसे बिना किसी दस्तावेज के जनसंख्या रजिस्टर में दर्ज कर लिया जाएगा। यानि कि पाकिस्तान से आए किसी भी आतंकी ने भी अपना नाम पता लिखवाना चाहा तो उसे लिख लिया जाएगा। संबंधित व्यक्ति के इस कथन को मानना पड़ेगा कि वह जो कह रहा है वहीं सही है। इतनी छूट के बाद भी एनपीआर का विरोध हो रहा है, यानि भारत की स्थिति किसी धर्मशाला से भी बदत्तर है। सब जानते हैं कि मुस्लिम देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर गैर मुस्लिम जातियों के लोगों खासकर हिन्दू, सिक्ख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई लोगों को प्रताडि़त किया जाता है, इसलिए ऐसे लोगों को भारत में नागरिकता देने के लिए नागरिकता कानून में संशोधन किया गया, लेकिन अब इस संशोधन पर भी देश में हिंसा का माहौल खड़ा किया जा रहा है। जो इस कानून को संविधान के खिलाफ बता रहे हैं वे दिल पर हाथ रखकर ईमानदारी से बताए कि क्या किसी मुस्लिम देश में इस्लाम धर्म के कारण किसी मुसलमान  पर अत्याचार होगा? देश का जब विभाजन हुआ था, तब पाकिस्तान में गैर मुसलमानों की आबादी 23 प्रतिशत थी, पिछले सत्तर वर्षों में यह आबादी घट कर मात्र तीन प्रतिशत रह गई, जबकि भारत में विभाजन के समय मुस्लिम आजादी करीब तीन करोड़ थी जो आम 23 करोड़ से भी ज्यादा है। भारत का कोई मुसलमान स्वयं को प्रताडि़त मान कर पाकिस्तान नहीं गया। भारत ने जो तरक्की की उसका लाभ बिना भेदभाव के मुसलमानों को भी मिला, लेकिन अब पाकिस्तान में सताए हिन्दुओं को भारत में नागरिकता देने का विरोध किया जा रहा है। जो लोग आज सड़कोंपर हिंसा कर रहे हैं वे तब कुछ नहीं बोले, जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे थे। यह माना कि भारत धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है, यहां हिन्दुओं को भी रहने का अधिकार है। जब अपने ही देश में हिन्दुओं को नागरिकता देने का विरोध किया जा रहा है, तब देश के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। चुनाव में भी उन पार्टियों को सफलता मिल रही है जो एनआरसी, सीएए और एनपीआर का खुला विरोध कर रहे हैं।
स.पी.मित्तल) (25-12-19)
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