तो क्या सीएए के मद्दे पर जामिया के छात्रों और शाहीनबाग के लोगों को भी समझाने में विफल रही है केन्द्र सरकार?

तो क्या सीएए के मद्दे पर जामिया के छात्रों और शाहीनबाग के लोगों को भी समझाने में विफल रही है केन्द्र सरकार?  आखिर मुसलमानों में कौन भ्रम फैला रहा है?  

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15 जनवरी को भी देश की राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के महिला-पुरुष बीच सड़क पर बैठे रहे। शाहीन बाग में पिछले एक माह से यही स्थिति है। भीषण सर्दी के बाद भी महिलाएं अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ धरना प्रदर्शन कर रही है। यह धरना प्रदर्शन रात और दिन जारी है। इससे दिल्ली के लाखों लोगों को भारी परेशानी हो रही है। नोएडा से दिल्ली आने जाने वाले लाखों लोग बेहद परेशान है। लाख कोशिश के बाद भी धरना प्रदर्शन समाप्त नहीं हो रहा है। इसी प्रकार दिल्ली स्थित जामिया  मिलिया यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी भी संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे है। शाहीनबाग क्षेत्र में बीच सड़क पर बैठी मुस्लिम महिलाएं न्यूज चैनलों पर कह रही है कि सरकार उन्हें बेदखल करना चाहती है। एनआरसी के जरिए मुस्लिमानों को परेशान किया जाएगा। महिलाओं का कहना है कि सरकार को एनआरसी और सीएए कानून वापस लेना चाहिए। केन्द्र सरकार और भाजपा ने पिछले दिनों देश भर में अभियान चलाया कि हम सीएए के मुद्दे पर भ्रम की स्थिति को दूर करेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर भाजपा के मंडल स्तर के कार्यकर्ता इस अभियान में सक्रिय हैं। लेकिन इसके बावजूद भी शाहीनबाग का धरना प्रदर्शन समाप्त नहीं हो रहा है। इसलिए यह सवाल उठा है कि क्या केन्द्र सरकार और भाजपा दिल्ली में ही लोगों को समझाने में विफल रही है। सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी पर अभी तक कोई चर्चा नहीं हुई है और संशोधित नागरिकता कानून से किसी भी मुसलमान की नागरिकता पर असर नहीं पड़ेगा। यह कानून नागरिकता देने के लिए है। इस कानून के अंतर्गत पाकिस्तान से प्रताडि़त होकर आए हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन व पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस कानून में किसी की भी नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है। सवाल उठता है कि आखिर सीएए को लेकर मुस्लिम समुदाय में भ्रम कौन फैला रहा है? सवाल यह भी है कि सरकार का मुस्लिम समुदाय से तालमेल क्यों नहीं हो रहा? ऐसे कौन से तत्व है जो एनआरसी को सामने रखकर मुसलमानों को डरा रहे हैं। शाहीन बाग के धरना प्रदर्शन से दिल्ली वासियों को होने वाली परेशानी का मुद्दा अलग है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले एक माह से हजारों लोग देश की राजधानी में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। यह देश के हित में उचित नहीं माना जा सकता। इसे अविश्वास ही कहा जाएगा कि जब सरकार किसी भी स्तर पर नागरिकता प्रभावित नहीं कर रही है तो तब हजारों लोग धरना प्रदर्शन कर रहे है। संशोधित नागरिकता कानून से उन लोगों को नागरिकता दी जा रही है, जो पाकिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताडि़त होकर भारत आए हैं। ऐसे लोग पिछले कई वर्षों से अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं, भले ही कुछ राजनीतिक दल अब इस कानून का विरोध करे, लेकिन पूर्व में इन दलों के नेता भी शरणार्थियों को नागरिकता देने की मांग कर चुके हैं। सवाल यह भी है कि हिन्दू, सिक्ख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय के लोग भारत नहीं आएंगे तो फिर कहां जाएंगे? चूंकि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है, इसलिए लोगों से संवाद करने और भ्रम को समाप्त करने की जिम्मेदारी सरकार की है। इसी प्रकार दिल्ली के जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में सीएए के विरोध में जो आंदोलन शुरू हुआ था, वह अब भी जारी है। आंदोलन के दौरान ही जो हिंसा हुई, वह भी अब मुद्दा बन गया है। जामिया यूनिवर्सिटी और शाहीन बाग का आंदोलन जल्द से समाप्त होना चाहिए। सरकार ऐसी पहल करनी चाहिए जिसमें मुस्लिम समुदाय में विश्वास पैदा हो, तथा उन तत्वों का पर्दाफाश हो, जो भ्रम फैला रहे हैं।
एस.पी.मित्तल) (15-01-2020)
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