भारत की सनातन संस्कृति के विरुद्ध है मिड डे मील में अंडा परोसना।

भारत की सनातन संस्कृति के विरुद्ध है मिड डे मील में अंडा परोसना।
पौष्टिकता के लिए शाकाहार में भी खाद्य सामग्री है।
छत्तसीगढ़ और मध्यप्रदेश की सरकारें पुनर्विचार करें। 

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21 जनवरी को  प्रात: साढ़े आठ बजे मेरी मुलाकात एक ऐसे जैन संत से हुई जिन्हें वाकई ईश्वर का स्वरूप माना जा सकता है। श्रीवर्धमान स्थानकवासी श्रावक संघ से संबंद्ध जैन संत इन दिनों अजमेर के पुष्कर रोड पर धर्म के प्रचार प्रसार में जुटे हैं। संघ से जुड़े जैन समाज के प्रतिनिधियों ने मोबाइल फोन न ले जाने, मुंह पर कपड़ा बांधने आदि की हिदायत पहले ही दे दी थी। मैंने सभी नियमों का पालन करते हुए जैन संत से मुलाकात की। मुझे हिदायत दी गई कि मैं अपने ब्लॉग में जैन संत के नाम का उल्लेख भी नहीं करूं। सख्त नियमों का पालन करने वाले जैन संत में कितना तप होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।  जिस संत के पास तप हो उसे वाकई किसी फोटो, नाम की जरुरत नहीं है। सवाल अनुयायियों की संख्या का भी नहीं है, बल्कि जीवन को सरल और तनावमुक्त बनाने का है। यदि ऐसे जैन संत की प्रेरणा से दो चार लोग भी तनावमुक्त होकर सरल जीवन जीते हैं तो धर्म का उद्देश्य पूरा हो जाता है। यह सब बातें मैं इसलिए लिख रहा हंू ताकि ब्लॉग में उठाए मुद्दे की गंभीरता हो सके। मुझे कहा तो यही गया कि यह मुद्दा मैं अपनी ओर से उठाऊ, लेकिन मेरा मानना है कि इस मुद्दे को जब तपस्वी जैन संत का आशीर्वाद मिलेगा, तभी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सरकारों पर असर होगा। जैन संत इस बात से दु:खी थे कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिड डे मील में स्कूली बच्चों को अंडा परोसा जा रहा है तथा आंगनबाड़ी केन्द्रों में भी महिलाओं को अंडे खिलाए जा रहे हैं। इसके पीछे पौष्टिकता का तर्क दिया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि अंडे खाने से शरीर को पौष्टिक तत्व मिलेंगे। जैन संत इस दावे से सहमत नहीं थे। संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भी अपने निष्कर्ष में माना है कि मांसाहार के मुकाबले में शाकाहार की खाद्य सामग्रियों में ज्यादा पौष्टिकता होती है। जैन संत के पास वो सभी रिपोर्ट और आंकड़ें उपलब्ध थे जिससे जाहिर होता है कि दूध, दाल सब्जी आदि में मांस या अंडे से ज्यादा पौष्टिक तत्व होते हैं। वैसे भी मांसाहार भारत की सनातन संस्कृति के विरुद्ध है। जब भारत में प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म के अनुरूप रहने की संवैधानिक छूट है, तब सरकार की योजनाओं में अंडा क्यों खिलाया जा रहा है। संत ने कहा कि यह जैन समाज का मुद्दा नहीं है, बल्कि धर्म समाज का है। मिड डे मील में अंडा परोसने का सभी को विरोध करना चाहिए। कुछ लोग अंडे को अब शाकाहार से जोडऩे लगे हैं। यह तर्क नहीं कुतर्क है। सब जानते हैं कि अंडे में जीव होता। अंडे से ही मांस वाली मुर्गी या मुर्गा तैयार होता है। ऐसे में अंडा स्वभाविक तौर पर मांस का टुकड़ा है। स्कूल तो शिक्षा का मंदिर होते हैं। मंदिरों में मांस परोसना कतई उचित नहीं है। सम्पूर्ण समाज और सभी धर्मों के धर्मगुरुओं का प्रयास होना चाहिए कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश  में मिड डे मील में अंडे का उपयोग नहीं हो। इसके लिए सामाजिक अभियान चलाया जाना चाहिए। जैन संत को उम्मीद है कि यदि समाज जागरुक होगा तो सरकारों को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना होगा। लोगों से ही सरकार बनती है। लोगों की भावनाओं का ख्याल रखना सरकार का दायित्व है।
एस.पी.मित्तल) (21-01-2020)
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