अब पुलिस के आचारण को सुधारने की जरुरत है।

अब पुलिस के आचारण को सुधारने की जरुरत है।
यदि थाने पर घटित घटना के लिए एसपी जिम्मेदार है तो फिर प्रदेश में घटित घटना के लिए मुख्यमंत्री को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
15 माह में बाड़मेर में तीन पुलिस अधीक्षक जबरन हटाए गए। 

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28 फरवरी को राजस्थान विधानसभा में बाड़मेर के ग्रामीण पुलिस स्टेशन पर हुई एक दलित युवक की मौत को लेकर जमकर हंगामा हुआ। हालात इतने बिगड़े कि नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल आमने-सामने हो गए। पूर्व में गृहमंत्री रह चुके कटारिया और धारीवाल ने अपनी अपनी ईमानदारी का दम भरा। पुलिस हिरासत में हुई युवक की मौत पर विपक्ष ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया तो सरकार ने बचाव में कहा कि एक आईपीएस, एक डीएसपी को एपीओ तथा थानेदार दीप सिंह को सस्पेंड करने के साथ-साथ पूरे थाने को लाइन हाजिर कर दिया गया है। सवाल उठता है कि बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को हटा देने से भविष्य में ऐसी वारदातें नहीं होगी? ऐसे कारणों से पिछले 15 माह में बाड़मेर में तीन पुलिस अधीक्षकों को जबरन हटाया गया है। यदि पुलिस अधीक्षक पर कार्यवाही करने का असर होता तो 27 फरवरी को थाने में दलित युवक जितेन्द्र की मौत नहीं होती। असल में पुलिस के आचरण को सुधारने की जरुरत है। दलित युवक जितेन्द्र को भी चोरी के पाइप खरीदने के आरोप में पुलिस जबरन उठा कर लाई थी। पुलिस का जोर चोर से ज्यादा चोरी का माल खरीदने वालों पर होता है। पुलिस के लिए चोर सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हो जाता है। चोर जिस व्यापारी का नाम लेता है पुलिस उसे जबरन उठा लाती है। सब जानते हैं कि संबंधित व्यापारी और व्यक्ति पुलिस थाने से कैसे बाहर आता है। इसे व्यवस्था का दोषी ही कहा जाएगा कि पुलिस का चोर तो सच्चा और ईमानदार हो जाता है तथा कथित तौर पर माल खरीदने वाला व्यक्ति या व्यापारी बेईमान। यदि पुलिस चोर की तरह आचरण नहीं करती तो बाड़मेर के ग्रामीण थाने में दलित युवक जितेन्द्र की मौत नहीं होती। भले ही थाने में जितेन्द्र को प्रताडि़त नहीं किया गया हो, लेकिन बगैर शिकायत के थाने पर लाया तो गया था। बाड़मेर का मुद्दा भी पुलिस के आचरण से जुड़ा। यदि पुलिस का आचरण ईमानदारपूर्ण हो तो फिर बाड़मेर जैसी घटना नहीं होंगी। यदि जितेन्द्र की मौत के लिए एसपी शरद चौधरी को जिम्मेदार माना जाता है तो फिर प्रदेश में घटित इस घटना की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी लेनी चाहिए। ऐसा नहीं कि कांग्रेस के शासन में ही पुलिस हिरासत में मौत हो रही है। भाजपा के शासन में भी मौतें हुई हैं। तब पुलिस का बुरा आचरण ही सामने आया। जब तक पुलिस के आचरण में सुधार नहीं होगा, तब तक ऐसी वारदामें होती रहेंगी। सब जानते हैं कि हमारा पुलिस कानून अंग्रेजों का बनाया हुआ है। जबकि देश को आजाद हुए 70 वर्ष हो गए। अंग्रेजों के समय जनता को गुलाम मना जाता था, जबकि लोकतंत्र में तो जनता मालिक है। यदि अब पुलिस अंग्रेजों जैसा व्यवहार करेगी तो फिर थोनों में युवकों की मौतें ही होंगी। पुलिस खासकर राजस्थान पुलिस की छवि डरावनी है। कहा तो जाता है कि पुलिस आम जनता के लिए है, लेकिन इसके उलट पुलिस की छवि सबके सामने है। यदि प्रताडऩा के बगैर ही बाड़मेर के थाने में दलित युवक जितेन्द्र की मौत हो गई है तो फिर पुलिस के डर का अंदाजा लगाया जा सकता है। जो नेता जनता के वोट से मंत्री और मुख्यमंत्री बनते हैं उनहें यह पता लगाना चाहिए कि पुलिस थाने का नाम सुनते ही व्यक्ति का दिल तेज धड़कने  क्यों लगता है? क्या पुलिस थाने प्रताडऩा या मौत के सेंटर हैं?
(एस.पी.मित्तल) (28-02-2020)
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