ऑक्सीजन के संकट पर राजस्थान हाई कोर्ट स्वत: संज्ञान क्यों नहीं लेता? क्या जजों को राजस्थानियों की मौतें नजर नहीं आ रही? केन्द्र और राज्य की लड़ाई में आखिर कब तक मरते रहेंगे लोग। केन्द्र के सिर ठीकरा फोड़ कर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है राज्य सरकार।

दिल्ली और कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि दिल्ली को 700 मीट्रिक टन और कर्नाटक को 1200 मीट्रिक टन ऑक्सीजन प्रतिदिन मिलनी चाहिए। कोर्ट ने इसके लिए केन्द्र को हिदायत भी दी है। दोनों राज्यों के हाईकोर्ट ने ऐसे आदेश जागरूक लोगों की जनहित याचिकाओं पर दिए हैं। यह माना कि राजस्थान में दिल्ली और कर्नाटक जैसे जागरूक लोगों की कमी है, लेकिन जब प्रतिदिन लोग मर रहे हैं, तब राजस्थान हाईकोर्ट भी स्वत: संज्ञान ले सकता है। आखिर हाईकोर्ट में बैठे जज भी तो इंसान हैं। कई जज तो वकील कोटे से हाईकोर्ट के जज बने हैं। वकील से जज बने भी राजस्थान के ही हैं। कोरोना काल में संक्रमित मरीज अस्पतालों के बाहर ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। प्रदेश के प्रमुख निजी अस्पतालों ने कोविड मरीजो की भर्ती पर रोक लगा दी है तो सरकारी अस्पतालों के अंदर और बाहर लोग तड़प तड़प कर मर रहे हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन देकर कह दिया है कि ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने का कार्य केन्द्र सरकार का है। केन्द्र सरकार ऑक्सीजन देगी तो मरीजों को उपलब्ध करवा दी जाएगी। केन्द्र सरकार का कहना है कि राजस्थान को मांग के अनुरूप ऑक्सीजन दी जा रही है। और फिर केन्द्र को पूरे देश में ऑक्सीजन की सप्लाई करनी है। केन्द्र और राज्य सरकार की इस लड़ाई का खामियाजा प्रदेश की जनता को उठाना पड़ रहा है। ऑक्सीजन की कमी से रोजाना जो मौतें हो रही हैं उनकी खबरें अखबारों में प्रमुखता से छप रही है। इन खबरों के आधार पर ही हाईकोर्ट को स्वत: संज्ञान ले लेना चाहिए। लोगों के जीवन को बचाने की जिम्मेदारी हाईकोर्ट की भी है। जब दिल्ली और कर्नाटक के हाईकोर्ट अपने प्रदेश को केन्द्र से ऑक्सीजन दिलवा सकते हैं तो राजस्थान का हाईकोर्ट क्यों नहीं? लोकतंत्र में जब कार्यपालिका विफल हो जाती है, तब लोगों की उम्मीद न्यायपालिका से हो होती है। जजों को अखबारों की खबरों पर भरोसा नहीं हो तो प्रदेश के किसी भी सरकारी अथवा प्राइवेट अस्पताल के बाहर दो तीन घंटे खड़े होकर हकीकत को देख लें। कोरोना संक्रमित मरीज और उनके परिजन अस्पतालों के बाहर गिड़गिड़ा रहे हैं उसे देखकर जजों की आंखों में भी आँसू आ जाएंगे। सरकार में बैठे लोग तो इतने बेरहम हो गए हैं कि लोगों का दर्द भी नहीं सुनाई देता। सरकार चलाने वाले लॉकडाउन को सख्त करने में लगे हुए हैं और कोरोना वायरस लोगों को शिकार बनाता जा रहा है। मौत के आंकड़े छिपाने में सरकार माहिर है। प्रदेशभर के श्मशान और कब्रिस्तान में शवों की लाइन लगी है, लेकिन मृतकों की संख्या रोजाना 150 के आसपास ही बताई जाती है। संक्रमण के दौरान जो व्यक्ति हार्ट अटैक से मरता है उसे कोविड की मृत्यु में शामिल नहीं किया जाता। जबकि कोरोना की दूसरी लहर में ज्यादातर मौतें हार्ट अटैक से ही हो रही हैं। राज्य सरकार सिर्फ अपनी विफलताओं को छिपाने में लगी हुई है।S.P.MITTAL BLOGGER (08-05-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9602016852To Contact- 9829071511

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