वसुंधरा सरकार के अफसर आरटीआई कानून का दम निकला रहे हैं। सूचना आयुक्त ने जताई नाराजगी।
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सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत मांगी गई सूचना देना अनिवार्य है, लेकिन जो लोग जनहित के अंतर्गत सूचनाएं मांगते हैं, उन्हें पता है कि राजस्थान की वसुंधरा राजे की सरकार के अधिकारी कितना तंग करते हैं। अनेक कार्यकर्ता तो हताश होकर अपने घर बैठ जाते हैं, लेकिन चन्द्रशेखर अग्रवाल और सीताराम अग्रवाल जैसे कार्यकर्ता भी हैं जो हिम्मत नहीं हारते। अफसरशाही चाहे कितना भी अड़ंगा लगा ले, लेकिन फिर भी अग्रवाल बंधु हर हाल में सूचना हासिल करते हैं। अग्रवाल बंधुओं ने अपनी एक शिकायत पर हुई कार्यवाही की जानकारी आरटीआई के तहत अजमेर के स्वायत्त शासन विभाग के क्षेत्रीय उपनिदेशक से 27 अप्रैल, 2014 को मांगी, यह सूचना 30 दिन के अंदर-अंदर देनी थी, लेकिन उपनिदेशक कार्यालय के अधिकारी 29 दिनों तक अग्रवाल बंधुओं को धक्के खिलाते रहे और अंतिम दिन पत्र भिजवा दिया कि वांछित सूचना के लिए 90 रुपए का शुल्क जमा करवाया जाए। उपनिदेशक सीमा शर्मा की यह कार्यवाही पूरी तरह आरटीआई कानून का दम निकालने वाली थी। असल में यह विभाग अग्रवाल बंधुओं को सूचना देना ही नहीं चाहता था। इसलिए अंतिम दिन पत्र भिजवाया। उपनिदेशक की इस कार्यवाही के खिलाफ अग्रवाल बंधुओं ने जयपुर में स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक के समक्ष अपील की, लेकिन निदेशक ने भी निर्धारित अवधि में कोई कार्यवाही नहीं की, लेकिन फिर अग्रवाल बंधुओं ने हिम्मत नहीं हारी। दोनों भाईयों ने इस मामले में द्वितीय अपील राज्य के सूचना आयुक्त पी.एल.अग्रवाल के समक्ष की। अग्रवाल ने यह माना कि अजमेर की उपनिदेशक सीमा शर्मा ने आरटीआई कानून के नियमों की पालना नहीं की है। अग्रवाल ने अपने महत्त्वपूर्ण फैसले में आदेश दिए कि प्रार्थी को वांछित सूचना नि:शुल्क दिलवाई जाए और भविष्य में आरटीआई की धारा 7(3)(क)(ख) का पालन किया जाए। इस धारा के मुताबिक संबंधित अधिकारी को आवदेन के 15 दिन के अंदर-अंदर शुल्क जमा कराने की सूचना दी जानी चाहिए और अगले पन्द्रह दिनों में अनिवार्य रूप से सूचना दी जाए। शुल्क के लिए अंतिम दिन सूचना भिजवाना आयुक्त अग्रवाल ने दोषपूर्ण माना।
आमतौर पर अधिकारी आरटीआई की सूचना को लेकर ऐसा ही रैवेया अपनाते हैं। अग्रवाल बंधुओं ने तो अपनी लड़ाई राज्य सूचना आयुक्त तक लड़ ली, लेकिन आम व्यक्ति इतनी लड़ाई कैसे लड़ सकता है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे यदि इस कानून का वाकई सम्मान करती हैं तो उन्हें उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए जो तीस दिन की अवधि में सूचना नहीं देते हैं। असल में सरकार कांग्रेस की हो अथवा भाजपा की। अफसरशाही का रवेया ऐसा ही रहता है। जब तक कोई सरकार इन अफसरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं करेगी, तब तक ये अधिकारी इसी तरह आरटीआई कानून का दम निकालते रहेंगे।
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(एस.पी. मित्तल) (27-05-2016)
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