तो फिर राजस्थान में 6 दिनों तक क्यों हुई रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल? क्या यह सरकार और रेजीडेंट डॉक्टरों के अहम का नतीजा है?
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4 जून को राजस्थान के रेजीडेंट डॉक्टरों की 6 दिन पुरानी हड़ताल खत्म हो गई। समझौता वार्ता के बाद डॉक्टरों के प्रतिनिधि ने कहा कि एमसीआई के निर्णयों को लागू करने के विरोध में हड़ताल नहीं की थी। इसी प्रकार सरकार ने जो कमेटी बनाई, उसके मुखिया डॉ. यूएस अग्रवाल ने कहा कि मेडिकल छात्रों की थिसिस मूल्यांकन के लिए बाहर नहीं भेजी जाएगी। इसी प्रकार उत्तर पुस्तिकाओं की जांच भी केन्द्रीय मूल्यांकन पद्धति से होगी। देखा जाए तो इस समझौता वार्ता में ऐसा कोई मुद्दा था ही नहीं, जिसकी वजह से प्रदेश भर के रेजीडेंट डॉक्टरों को 6 दिनों तक हड़ताल पर रहना पड़े। पहले बात डॉक्टरों की। जब एमसीआई नियमों का विरोध नहीं था तो फिर हड़ताल क्यों की गई? जब डॉक्टरों को यह पता था कि एमसीआई के नियम हर राज्य सरकार को लागू करने हैं तो फिर हड़ताल का सहारा क्यों लिया गया? इस प्रकार सरकार को भी इस बात का जवाब देना चाहिए कि रेजीडेंट डॉक्टरों से हड़ताल से पहले ही वार्ता क्यों नहीं की। उत्तर पुस्तिकाओं की जांच, केन्द्रीय मूल्यांकन पद्धति से करवाने और छात्रों की थिसिस को राजस्थान से बाहर नहीं भेजने का निर्णय राज्य सरकार पहले भी कर सकती थी। लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रदेश के मरीज 6 दिनों तक रेजीडेंट डॉक्टरों और सरकार के अहम् के शिकार होते रहे। रेजीडेंट को इस बात का अहम् था कि सरकारी अस्पताल उन्हीं के भरोसे चल रहे हैं और सरकार का यह अहम् था कि रेजीडेंट सिर्फ विद्यार्थी हैं। कोई विद्यार्थी संगठित होकर सरकार को चुनौती नहीं दे सकता। यह सही है कि कि दोनों ही पक्ष शुरू से ही सकारात्मक रूख अपनाते तो 6 दिनों तक हड़ताल नहीं होती। सरकार के हड़ताल ने 5वें दिन 3 जून को जो कमेटी गठित की, उसे पहले भी किया जा सकता था। माना राजस्थान में भाजपा सरकार के पास विशाल बहुमत है। लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार को सबकी सुननी चाहिए। रेजीडेंट डॉक्टरों को भी यह समझना चाहिए कि उनका कार्य आम लोगों की पीड़ा से जुड़ा हुआ है।
(एस.पी. मित्तल) (4-06-2016)
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