भीषण गर्मी में मनरेगा कार्यस्थल पर ही महिला श्रमिक की मौत। अजमेर में यह तीसरी मौत। सीएम वसुंधरा राजे बताएं इन मौतों का जिम्मेदार कौन? कहां हैं कलेक्टर साहब?
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अजमेर जिले के मांगलियावास पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले ब्रिकचियावास गांव की रहने वाली श्रीमती सुगनी के शव का पोस्टमार्टम 11 जून को कर दिया गया। शव परिजनों को सौंप दिया। सुगनी की मौत 10 जून को उस समय हुई, जब वह कांकरियां गांव में रपट का कार्य मनरेगा श्रमिक के तौर पर कर रही थी। राजस्थान में आमतौर पर गर्मी के दिनों में मनरेगा का समय कम कर दिया जाता है, लेकिन इस बार सरकार ने समय में कोई कमी नहीं की। श्रमिकों को प्रात: 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक काम करना पड़ता है। गंभीर बात तो यह हैं कि नियमों के मुताबिक कार्य स्थलों पर छाया-पानी आदि की भी सुविधा नहीं होती है। 10 जून को भी जब सुगनी भीषण गर्मी में काम करते-करते थक गई थी तो वह कार्यस्थल से दूर खेजड़ी के पेड़ की छाया में विश्राम करने चली गई। मनरेगा का रिकॉर्ड बताता है कि जब साढ़े ग्यारह बजे उपस्थिति ली गई तो सुगनी मौजूद थी, लेकिन दोपहर 3 बजे जब सुगनी नजर नहीं आई तो उसकी खोजबीन की गई। खोजबीन में ही सुगनी का शव खेजड़ी के पेड़ के नीचे पड़ा मिला। यानि मनरेगा का काम करते-करते ही सुगनी की मौत हो गई। पिछले 15 दिनों में मनरेगा श्रमिक की अजमेर जिले में यह तीसरी मौत है। किसी भी सरकार के लिए इस तरह श्रमिकों की मौत होना बेहद शर्मनाम है। सरकार का जो तंत्र बना हुआ है उसमें ऐसी खबरें मुख्यमंत्री तक पहुंचती ही नहीं है। इसलिए सीएम वसुंधरा राजे को भी यह पता नहीं होगा कि अजमेर में 15 दिनों में तीन मनरेगा श्रमिकों की मौत हो गई है। जहां तक जिला कलेक्टर गौरव गोयल का सवाल है तो उन्हें विरासत में एक बिगड़ा हुआ जिला मिला है। गोयल फिलहाल बिगड़े जिलों को पटरी पर लाने का काम कर रहे है। ऐसे में 3 मनरेगा श्रमिकों की मौत का मामला कलेक्टर की प्राथमिकता में नहीं आता। यही वजह है कि कलेक्टर ने अभी तक भी श्रमिकों की मौत पर कोई सक्रियता नहीं दिखाई है। हो सकता है कि कलेक्टर को भी इन मौतों की जानकारी नहीं हो। जहां तक अजमेर के सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं का सवाल है तो जिले के किसी भी नेता में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह मुख्यमंत्री को मनरेगा के समय में कटौती करने का सुझाव दे सके। क्षेत्रीय सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट तो मनरेगा के कार्य का निरीक्षण करने में असमर्थ है, क्योंकि जाट का स्वयं का स्वास्थ्य ही खराब चल रहा है। जाट को अक्सर एम्बुलेंस में जयपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाया जाता है। हालांकि जाट मनरेगा के श्रमिकों की पीड़ा को अच्छी तरह समझते हैं। जिले के 8 में से 7 भाजपा के विधायक हैं। इनमें से 2 स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री और एक संसदीय सचिव के पद पर बैठ कर मंत्री की सुविधाएं भोग रहे है। राजनीतिक दृष्टि से अजमेर में सत्तारूढ़ पार्टी की स्थिति बेहद मजबूत है। अजमेर से राज्यसभा के सांसद भूपेन्द्र यादव तो भाजपा के शक्तिशाली राष्ट्रीय महामंत्री हैं। इतना सब कुछ होने पर भी यदि भीषण गर्मी में तीन मनरेगा श्रमिक मर जाएं तो फिर ऐसे जनप्रतिनिधियों के होने पर प्रश्न चिन्ह तो लगता ही है। सीएम वसुंधरा राजे को यह बताना चाहिए कि इन तीन श्रमिकों की मौत का जिम्मेदार कौन है? राजे तो स्वयं को महिलाओं के प्रति बेहद संवेदनशील बतातीं हैं। यदि इसके बाद भी 55 साल की सुगनी मिट्टी की तगारी उठाते-उठाते मर जाए तो फिर ऐसी व्यवस्था का क्या किया जाए।
(एस.पी. मित्तल) (11-06-2016)
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