आखिर कैराना में क्यों नहीं निकल सकती निर्भय और सद्भावना यात्रा? रमजान माह में भी दहशत का माहौल।

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इन दिनों रमजान माह चल रहा है, इस पवित्र माह के दिनों में इबादत का खास महत्त्व होता है। अधिकांश मुस्लिम भाई रोजा रखते हैं। देशभर में हिन्दू भाईयों द्वारा इफ्तार पार्टी आयोजित की जा रही है। मुस्लिम भाइयों को पिंड खजूर और दूसरे फल खिलाकर रोजा तुड़वाने में हिन्दू भाई कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। रमजान माह के ऐसे माहौल में 17 जून को यूपी के शामली जिले के कैराना शहर में न तो निर्भय यात्रा और न सद्भावना यात्रा निकल सकी। निर्भय यात्रा भाजपा के विधायक संगीत सोम तथा सद्भावना यात्रा सपा के अतुल प्रधान के नेतृत्व में निकली थी।लेकिन शामली के डीएम ने सम्पूर्ण क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी और दोनों ही यात्राओं को रोक दिया। सवाल यात्राओं के रुकने का नहीं है। अहम सवाल यह है कि आखिर कैराना का माहौल क्या वाकई दहशतपूर्ण हो गया है। हो सकता है कि दोनों ही यात्राओं का मकसद राजनीति से जुड़ा हो, लेकिन क्या इन यात्राओं को निकालने के बाद कैराना का माहौल खराब हो सकता था? इतना तो तय है कि यदि कैराना का माहौल शांतिपूर्ण होता तो दोनों यात्रा को निकलने दिया जाता। यूपी की अखिलेश सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि कैराना में साम्प्रदायिकता के आधार पर पलायन नहीं हुआ है। यानि जिन हिन्दुओं ने कैराना छोड़ा है वे अपनी मर्जी से गए हैं। चूंकि यूपी में सपा का शासन है, इसलिए कैराना में माहौल को शांत बताया ही जाएगा। लेकिन 17 जून को सरकार के इस दावे की पोल तब खुल गई, जब निर्भय और सद्भावना यात्रा को रोका गया। यदि कैराना के हालात सामान्य होते तो इन दोनों यात्राओं को कैराना पहुंचने दिया जाता।
कश्मीर जैसे हालात न बने:
यूपी की अखिलेश सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि कैराना और यूपी के अन्य शहरों के हालात कश्मीर जैसे नहीं बनने चाहिए। यदि हिन्दू समुदाय ने भय और आतंक की वजह से पलायन किया है तो सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। 25 वर्ष पहले जब कश्मीर घाटी में भी हिन्दुओं ने भय और आतंक की वजह से पलायन शुरू किया था, तब भी सरकारों ने कहा था कि पलायन साम्प्रदायिकता के आधार पर नहीं है। यही वजह रही कि धीरे-धीरे सम्पूर्ण कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई। यदि 25 वर्ष पहले घाटी में हिन्दुओं को संरक्षण दिया जाता तो आज कश्मीर के हालात इतने बदत्तर नहीं होते। अखिलेश सरकार को कश्मीर के हालातों से सबक लेना चाहिए। यूपी में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं। कैराना के मुद्दे पर भाजपा और सपा की झोलियां वोटों से भर सकती हंै। लेकिन यूपी में सरकार बना लेना ही सब कुछ नहीं है। हमें देश की एकता और अखंडता को ध्यान में रखते हुए राजनीति करनी चाहिए।
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(एस.पी. मित्तल) (17-06-2016)
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