तो ख्वाजा साहब के सूफीवाद के विचारों की हत्या है अमजद साबरी का मर्डर। उर्स में चूमते थे ख्वाजा की चौखट।
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विश्व विख्यात साबरी ब्रदर्स परिवार के सदस्य सूफी गायक अमजद साबरी की 22 जून को पाकिस्तान के कराची में दो बाइक सवारों ने गोली मार कर हत्या कर दी। अब साबरी की हत्या की दुनिया भर में आलोचना हो रही है। अमजद साबरी भी उनके पिता गुलाम फरीद का अजमेर स्थित संसार प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह से गहरा नाता रहा है। ख्वाजा साहब ने सूफीवाद का जो विचार दिया उसको पिता-पुत्र ने अपनी कव्वालियों में कई बार दर्शाया। इसीलिए साबरी ब्रदर्स घराने के गायकों को सूफी गायक कहा जाता है। यानि अमजद साबरी अपनी कव्वालियों के माध्यम से ख्वाजा साहब के सूफीवाद के विचारों को प्रसारित कर रहे थे। इसलिए अब यह माना जा रहा है कि अमजद साबरी का मर्डर ख्वाजा साहब के विचारों की हत्या के समान है। दुनिया में मुस्लिम देशों में भले ही कट्टरवाद का बोलबाला हो, लेकिन उसी माहौल में साबरी ब्रदर्स जैसे घराने सूफीवाद की लौ को जलाए हुए हैं। भारत में भी जो लोग कट्टरवाद के पक्षधर हैं, उन्हें अमजद साबरी की हत्या से सबक लेना चाहिए। जब मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में अमजद साबरी जैसों को मारा जा रहा है तो फिर आम मुसलमान सुरक्षित कहा है? अमजद साबरी के सूफीवाद अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में आते रहे हैं। दरगाह के महफिल खाने में ख्वाजा साहब को लेकर कव्वालियां भी पेश करते थे। ख्वाजा साहब की दरगाह में आना अमजद को विरासत में मिला। उनके पिता गुलाम फरीद भी ख्वाजा साहब की चौखट पर कव्वालियां पेश करते हैं। महफिल खाने में होने वाली कव्वालियों की सदारत दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैय्यद नसीरुद्दीन चिश्ती करते हैं। चिश्ती ने बताया कि जब अमजद उनके हाथ चूमते थे तो उनकी आंखों में आंसू होते थे। नसीरुद्दीन को तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि अमजद अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने अमजद की हत्या की है उन्हें खुदा कभी माफ नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि अमजद को कट्टर पंथियों की ओर से लगातार धमकियां मिल रही थी, लेकिन इसके बावजूद भी पाकिस्तान की सरकार ने सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सरकार आम मुसलमान की सुरक्षा करने में विफल है। चिश्ती ने भी स्वीकार किया कि अमजद साबरी का मर्डर ख्वाजा साहब के सूफीवाद के विचारों की हत्या के समान है। उन्होंने कहा कि आम कट्टरपंथियों की वजह से जो हालात है, उनका मुकाबला सिर्फ सूफीवाद से ही किया जा सकता है। आज सूफीवाद को भी खतरा हो गया है। जिसको बचाना बेहद जरूरी है।
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(एस.पी. मित्तल) (23-06-2016)
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