नरेन्द्र मोदी के हथोड़े को मारने में ताकत लगाएं कांग्रेस और विपक्षी दल। आखिर अलगाववादी कश्मीर घाटी को खुलने क्यों नहीं देते?

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नरेन्द्र मोदी के हथोड़े को मारने में ताकत लगाएं कांग्रेस और विपक्षी दल।
आखिर अलगाववादी कश्मीर घाटी को खुलने क्यों नहीं देते?
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संसद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह और संसद के बाहर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो टूक शब्दों में कहा कि भारत कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करेगा, लेकिन यह बात हमारे कश्मीर पर नहीं, बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर पर होगी। सरकार ने यह बात तब कही है, जब कश्मीर घाटी में पिछले 35 दिनों से कफ्र्यू लगा हुआ है और पाकिस्तान कश्मीर के ताजा हालातों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठा रहा है। जो जागरुक पाठक कश्मीर के हालातों पर नजर रखते हैं, उन्हें पता है कि यह पहला अवसर है, जब किसी प्रधानमंत्री ने कश्मीर घाटी में आतंकवाद और अलगावाद को कुचलने के लिए इतनी मजबूती के साथ हथौड़े को हाथ में उठाया है। कांग्रेस और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को चाहिए कि प्रधानमंत्री के इस हाथौड़े में ताकत लगाकर आतंकवाद पर पुरजोर वार करवाया जाए। यदि राजनेताओं ने अपने वोट की खातिर प्रधानमंत्री के हथौड़े की ताकत को कमजोर किया तो फिर कभी भी हमारे कश्मीर से आतंकवाद को नहंी मिटाया जा सकता है। सब जानते हैं कि पाकिस्तान के इशारे पर ही हमारे कश्मीर में आतंकी और अलगाववादी वारदातें हो रही है। इसलिए पिछले 35 दिनों से कश्मीर घाटी बंद पड़ी है। ऐसा नहीं कि कफ्र्यू की वजह से ऐसे हालात हैं। अलगाववादियों के नेता भी पाकिस्तान के इशारे पर घाटी में बंद और हड़ताल को आगे बढ़ाते जा रहे हैं। अब इस बंद को 18 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया गया है। आजादी के बाद यह पहला अवसर है कि जब कश्मीर घाटी में इतने लम्बे समय तक कफ्र्यू और बंद रखा गया है। पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर यही दुष्प्रचार करना चाहता है। पिछले 35 दिनों में जम्मू कश्मीर की महबूबा मुफ्ती की सरकार ने जब जब भी कफ्र्यू में डील देने की कोशिश की, तो सुरक्षा बलों पर हमले किए गए। ऐसे में जवाबी कार्यवाही में सुरक्षा बलों को गोली चलानी पड़ी। असल में अलगाववादी नहीं चाहते है कि घाटी में शांति हो। नरेन्द्र मोदी से पहले सभी प्रधानमंत्रियों ने दबाव में आकर अलगाववादियों की शर्तों को माना। इसका नतीजा यह निकला कि सम्पूर्ण घाटी अलगाववादियों के कब्जे में आ गई। 4 लाख हिन्दुओं को अत्याचार की वजह से कश्मीर छोडऩा पड़ा। आज सरकार के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि घाटी में शांति बहाली के लिए किससे वार्ता की जाए। अलगाववादियो ंके नेताओं से जब भी बात की गई तो उन्होंने घाटी को पाकिस्तान में मिलने की शर्त रखी। वार्ताओं का पिछला रिकॉर्ड बताता है कि सरकारों ने हर बार अलगावादियों के सामने घुटने टेके हंै। अब घाटी में वो ही हो रहा है जो पाकिसतान चाहता है। ऐसे माहौल में नरेन्द्र मोदी ने पाक अधिकृत कश्मीर का जो मुद्दा उठाया है, उसे देशवासियों का भी समर्थन मिलना चाहिए। जो लोग अभी भी अलगाववादियों का समर्थन करते है, वे बताए कि क्या घाटी को पाकिस्तान में शामिल होने दिया जाए? जहां तक जम्मू कश्मीर में युवाओं को रोजगार दिलवाने और क्षेत्र का विकास करवाने का सवाल है तो मोदी सरकार ने एक बार फिर 80 हजार करोड़ रुपए पैकेज की घोषणा की है। हालांकि पूर्व में घोषित ऐसे पैकेजों का लाभ लेने के बाद भी घाटी में देश भक्ति का माहौल देखने को नहीं मिला।
(एस.पी. मित्तल) (13-08-2016)
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