वाकई अजमेर के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का एक साल बेमिसाल है। यह बात भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के पार्षद मानते हैं।
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वाकई अजमेर के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का एक साल बेमिसाल है।
यह बात भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के पार्षद मानते हैं।
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अजमेर नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर देश के सबसे बड़े दैनिक अखबार भास्कर ने एक साल बेमिसाल नामक एक पुस्तक प्रकाशित की है। यह पुस्तक भास्कर के पाठकों को नि:शुल्क दी जा रही है। इस पुस्तक में जहां मेयर गहलोत की उपलब्धियां बताई गई है, वहीं निगम के सभी 60 वार्डों में पार्षदों द्वारा करवाए गए कार्य भी लिखे गए हैं। पार्षद गहलोत की पार्टी भाजपा का हो या विपक्ष-कांग्रेस का। सभी पार्षदों के रंगीन फोटो के साथ उनके वार्ड में हुए विकास कार्यों का विवरण है। यही वजह है कि अब भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के पार्षद गहलोत के एक साल को बेमिसाल मानते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार-बार अजमेर आकर और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट अपने चुनाव क्षेत्र अजमेर में विकास न होने की बात करे, लेकिन कांग्रेस का शायद ही कोई पार्षद हो, जो अपने वार्ड में विकास कार्य न होने का आरोप लगाए। गहलोत ने भास्कर से प्रकाशित पुस्तक में यह बता दिया है कि कांग्रेस के पार्षदों के वार्डों में भी विकास कार्य करवाए गए हैं। निगम के 60 वार्डों में भाजपा के 31 और कांग्रेस के 22 पार्षद हैं। शेष 7 निर्दलीय पार्षद भी गहलोत के पक्के समर्थक माने जाते हैं। इसलिए नगर निगम में पार्षदों के बीच राजनीति का माहौल है ही नहीं। नगर निगम में गहलोत परिवार की भावना से काम चल रहा है। इसे गहलोत की बेमिसाल कार्यशैली ही कहा जाएगा कि एक भी पार्षद को न तो सफाई और न अतिक्रमण होने की समस्या है।
विपरित हालातों में संभाला था मेयर का पद:
साल भर पहले गहलोत ने विपरीत परिस्थितियों में मेयर का पद संभाला था। मेयर बनाने से पहले ही भाजपा के पार्षदों में बगावत हो गई। बगावत भी ऐसी गहलोत की उम्मीदवारी को उन्हीं की पार्टी के दिग्गज पार्षद सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने चुनौती दी। चुनौती भी ऐसी की मतदान में दोनों को तीस-तीस पार्षदों के वोट मिले। यदि शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी गोली नहीं देते तो गहलोत का मेयर बनाना न मुमुकिन था। चीखने और चिल्लाने वाले अपना काम करते रहे और दगहलोत ने मेयर की शपथ ले ली। सब जानते हैं कि उन दिनों पूरे शहर में पक्के निर्माण तोडऩे की अफरा-तफरी मची हुई थी। हाईकोर्ट ने 490 कॉमर्शियल अवैध निर्माण को तोडऩे के आदेश दे दिए थे। जिन परिस्थितियों में गहलोत ने मेयर का पद संभाला, उस में माना जा रहा था कि आने वाले दिन मुश्किल भरे होंगे। लेकिन आज शहरवासी देख रहे हैं कि कोई अफरा-तफरी नहीं है। गहलोत ने अपनी कार्यशैली से ऐसा रास्ता निकाला की हाईकोर्ट के आदेश की पालना भी हो जाए और किसी का अवैध निर्माण भी न टूटे। पिछले एक वर्ष में गहलोत ने शहर के शायद ही किसी व्यक्ति को नराज किया हो। शहरभर के कारोबारी भी कांग्रेस के पार्षदों की तरह संतुष्ट हैं। निगम के अधिकांश अधिकारी और कर्मचारियों से भी गहलोत के मधुर संबंध हैं। सब जानते हैं कि कांग्रेस के शासन में तत्कालीन मेयर कमल बाकोलिया की आए दिन निगम में अधिकारियों से झड़प होती रहती थी। लेकिन अब निगम के अधिकारी एवं कर्मचारी गहलोत को अपने परिवार का मुखिया मानते हैं। सरकार ने चाहे किसी अधिकारी की नियुक्ति की हो, गहलोत ने सभी से काम चला लिया, इसमें कोई दो राए नहीं गहलोत को अधिकारियों से काम लेना आता है।
कलेक्टर से दोस्ती:
गहलोत के एक साल बेमिसाल में जिला कलेक्टर गौरव गोयल की भी भूमिका है। सब जानते हैं कि गहलोत के पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से अच्छे संबंध नही ंथे। कलेक्ट्रेट पर हुए कचरा कांड एवं अन्य कारणों से राजे नाराज ही रही, लेकिन इसे कलेक्टर गोयल के प्रयास ही कहे जाएंगे कि अब सीएम राजे गहलोत को एक अच्छा राजनीतिज्ञ मानती हैं। स्वतंत्रता दिवस के राज्य स्तरीय समारोह में जब सीएम दो दिन अजमेर में रही तो कलेक्टर ने कई मौकों पर मेयर गहलोत की प्रशंसा की। सीएम को भी इस बात पर आश्चर्य हुआ कि धर्मेन्द्र गहलोत में इतना बदलाव कैसे हो गया। गहलोत के संबंध सुधरने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भास्कर की पुस्तिका विमोचन भी सीएम ने किया। यदि गौरव गोयल ने अजमेर में दो वर्ष कलेक्टरी कर ली तो यह जोड़ी अजमेर के कई बड़े भाजपा नेताओं को पीछे छोड़ देगी। कलेक्टर तो चले जाएंगे, लेकिन गहलोत का झंडा अजमेर की राजनीति की जमीन पर बहुत मजबूती के साथ गाड देंगे।
(एस.पी. मित्तल) (19-08-2016)
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