बेटी बचाने के लिए ससुराल वालों की सोच में भी हो बदलाव। जयपुर में एक मां ने 4 माह की बेटी की हत्या।
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बेटी बचाने के लिए ससुराल वालों की सोच में भी हो बदलाव। जयपुर में एक मां ने 4 माह की बेटी की हत्या।
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इन दिनों पूरे देश में जयपुर की एक मां नेहा गोयल द्वारा अपनी 4 माह की मासूम बेटी की हत्या करने की चर्चा हो रही है। सभी लोग उस मां को कोस रहे हैं, जिसने अपनी बेटी की ही हत्या कर दी। हालांकि हत्यारी मां ने अपना जुल्म स्वीकार कर लिया है लेकिन फिर भी अदालत के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए। हमें मां की उस मानसिक स्थिति को भी समझना चाहिए, जिसमें बेटी की हत्या की जा रही है। जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार हो रहा है, वैसे-वैसे बेटियों को भी बेटों के समान देखा जा रहा है। जिन परिवारों में एक बेटा और एक बेटी है, उनमें बेटे के मुकाबले बेटी को ज्यादा अच्छे तरीके से रखा जाता है। जो माता-पिता बेटे के मुकाबले बेटी को ज्यादा अच्छे तरीके से रखते है उनके सामने एक चिन्ता बेटी के ससुराल में रहने की भी होती है। वे माता-पिता बहुत भाग्यशाली है, जिनकी बेटी ससुराल में सम्मान पूर्वक रह रही है। लेकिन अधिकांश माता-पिता अपनी बेटी के लिए ससुराल में होने वाली परेशानियों की वजह से ही चिंतित रहते हैं। जब बेटी को ससुराल में कोई तकलीफ होती है तो माता-पिता ही सबसे ज्यादा परेशान होते हैं। बेटी को कोख में ही मारने या बेटी के बजाए बेटे की चाह रखने के पीछे ससुराल वालों की सोच भी है। हमारी यह सामाजिक व्यवस्था है कि बेटी वाले माता-पिता को झुकना ही पड़ता है। यदि हमें बेटी को बचाना है तो ससुराल वालों को भी अपनी सोच में बदलाव करना होगा। समझ में नहीं आता कि सास-ससुर, बहु को बेटी की तरह क्यों नहीं रखते। बहु की छोटी सी गलती पर भी बड़ा हंगामा कर दिया जाता है। यदि ससुराल में बहु को बेटी की तरह रखा जाए तो बेटी बचाओं के अभियान को और बल मिल सकता है। अधिकांश माता-पिता को पहले बेटी के विवाह की चिंता होती है और फिर बेटी के ससुराल में रहने को लेकर चिंतित रहते हैं। ऐसा नहीं कि हर बेटी को ससुराल में परेशानी होती है। अनेक बेटियां अपने ससुराल मे अच्छी तरह और सम्मानपूर्वक रहती हैं। लेकिन अधिकांश ससुराल में बेटियों के साथ जो व्यवहार किया जाता है उससे माता-पिता सबसे ज्यादा दुखी होते हैं। इसलिए कई बार मुंह से यह निकल जाता है कि काश बेटी होती ही नहीं। ससुराल वालों की सोच बदलने में सास और ननद की भूमिका सबसे अहम है। जो मापदण्ड माता-पिता अपनी बेटी के लिए निर्धारित करते हैं वो ही मापदण्ड बहु के लिए भी होने चाहिए। यदि किसी भी माता-पिता को बेटी के लिए ससुराल की चिंता न हो तो बेटियों की जान और ज्यादा बचाई जा सकती है।
(एस.पी. मित्तल) (10-09-2016)
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