एकता नहीं होने का खामियाजा भुगत रहा है जैन समाज। ब्यावर में हुआ युवाओं का राष्ट्रीय सम्मेलन।
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11 सितम्बर को राजस्थान की औद्योगिक नगरी ब्यावर में साधुमार्गी जैन समाज का राष्ट्रीय युवा सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में मेरे सहित राजफैड की प्रबन्ध निदेशक वीणा प्रधान (आईएएस), चित्तौड़ के एसपी, ए-1 न्यूज चैनल के चीफ अनिल लोढ़ा, दैनिक भास्कर के चीफ रिपोर्टर सुरेश कासलीवाल, ब्यावर के विधायक शंकर सिंह रावत, सभापति श्रीमती बबीता चौहान, दैनिक निरन्तर के सम्पादक रामप्रसाद कुमावत, वरिष्ठ पत्रकार सिद्धांत जैन आदि अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। सम्मेलन में अतिथियों के साथ-साथ जैन समाज के पदाधिकारियों ने भी विचार रखे। सभी का सम्बोधन जैन समाज की एकता पर केन्द्रित रहा। यह माना गया कि जब समाज के हर क्षेत्र में बुराई आई है तो फिर जैन समाज भी अछूता नहीं रहा है, लेकिन जैन समाज भी कई विचारधाराओं में बांटा हुआ है। इसलिए संपन्नता होने के बावजूद राजनीतिक दृष्टि से मजबूत स्थिति में नहीं है। श्रीमती इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थी तो जैन समाज ने मांग की कि समाज के धार्मिक उत्सवों पर एक छुट्टी घोषित की जाए। तब श्रीमती गांधी ने तत्काल एक दिन के अवकाश पर सहमति जता दी, लेकिन यह शर्त रखी कि जैन समाज के सभी धड़े एक होकर कोई एक दिन निश्चित कर ले। आज 40 वर्ष गुजर गए, लेकिन किसी धार्मिक आयोजन पर एक दिन के अवकाश पर सहमति नहीं हो पाई है। जैन समाज श्वेताम्बर और दिगम्बर में ही विभाजित नहीं है बल्कि स्थानकवासी, साधुमार्गी, तेरापंथी आदि में बटा हुआ है। इसका दोष साधु संतों को नहीं है, बल्कि समाज के लोगों को है। यदि जैन समाज के आम व्यक्ति एक साथ एक जाजम पर बैठ जाए तो फिर जैन समाज की एकता को कोई नहीं तोड़ सकता। समाज के लोगों में भले ही पूजा पद्वति भिन्न हो, लेकिन सभी लोग भगवान महावीर स्वामी को मानते हैं। ऐसे में भगवान महावीर के अनुयायी अलग-अलग होने ही नहीं चाहिए। सम्मेलन में यह बात भी उभर कर सामने आई कि अब पुरानी परम्पराओं से हटकर आधुनिक क्रान्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए। सूचना के क्षेत्र में जो क्रान्ति आई है, उसका लाभ साधु संतों को उठाना चाहिए ताकि विचारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके। यहां यह उल्लेखनीय है कि साधुमार्गी जैन संत और साध्वी प्राकृतिक सुविधाओं का ही उपयोग करते हैं। प्रवचन स्थल पर न तो माईक न लाईट का उपयोग होता है। इतना ही नहीं फोटो खिचने पर भी प्रतिबन्ध है। साधु साध्वी बिना माईक के ही प्रवचन देते हैं, भले ही पीछे बैठे व्यक्ति को प्रवचन सुनाई न दे। सांस लेने से भी किसी जीव की हत्या न हो इसके लिए मुंह पर कपड़ा रूमाल बांधा जाता है। कई बार इस रूमाल की वजह से ही आवाज साफ सुनाई नहीं देती है। कितना भी लम्बा सफर तय करना हो साधुमार्गी साधु-संत मोटर वाहनों का उपयोग नहीं करते हैं। पैदल और नंगे पैर ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। सम्मेलन का संचालन प्रकाश जैन ने किया।
जियो और जीने दो का नारा बदनाम हो गया है।
सम्मेलन से पहले ब्यावर के महावीर भवन में साधुमार्गी जैन साध्वी अनोखा कंवर मा.स. ने कहा कि आज जियो और जीने दो का नारा जैन समाज के लोग ही बदनाम कर रहे हैं। शादी-समारोह के आयोजन रात्रि के समय बड़े-बड़े पार्क में होते हैं, ऐसे समारोह से न जाने कितने जीवों की हत्या हो जाती है। उन्होंने कहा कि धर्म का अनुसरण करने वाले व्यक्ति का जीवन ही सरल और तनावमुक्त होता है।
(एस.पी. मित्तल) (11-09-2016)
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