राजस्थान के कोटड़ी कस्बे में मुसलमानों ने ईद के दिन नहीं की कुर्बानी की रस्म। जलझूलनी एकादशी पर रखा हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का ख्याल।
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राजस्थान के कोटड़ी कस्बे में मुसलमानों ने ईद के दिन नहीं की कुर्बानी की रस्म। जलझूलनी एकादशी पर रखा हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का ख्याल।
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13 सितम्बर को देशभर में जहां मुसलमानों ने ईद का पर्व मनाया, वहीं हिन्दुओं ने जलझूलनी एकादशी पर अनेक धार्मिक आयोजन किए। हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के कोटड़ी कस्बे में 13 सितम्बर को ईद के दिन मुसलमानों ने कुर्बानी की रस्म नहीं की। असल में कोटड़ा की जामा मस्जिद पेश इमाम मोहम्मद फरीद आलम ने 12 सितम्बर को नमाज के दौरान ही ऐलान किया था कि जलझुलनी एकादशी पर निकलने वाली सवारियों और मंदिरों में होने वाले धार्मिक आयोजनों को देखते हुए कोई भी मुसलमान बकरे आदि की कुर्बानी न दे। पेश इमाम की इस अपील का आमतौर पर असर भी हुआ। 13 सितम्बर को कोटड़ी कस्बे में धूमधाम से भगवान की सवारियां निकालकर जल में विसर्जित किया गया। पेश इमाम ने स्वीकार किया कि एकादशी पर देर रात तक हिन्दुओं के धार्मिक आयोजन होते हैं, इसलिए मुसलमान 14 और 15 सितम्बर को कुर्बानी की रस्म अदा करेंगे। पेश इमाम ने कहा कि भले ही कोटड़ी एक छोटा सा कस्बा हो, लेकिन देश के हालातों को देखते हुए कोटड़ी ने दुनिया भर में साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया है। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि उनकी अपील का आम मुसलमानों ने पालन किया। उन्होंने बताया कि पूर्व में भी एकादशी और मोहर्रम एक ही दिन थे। तब भी मुसलमानों ने मोहर्रम के जुलूस अगले दिन निकाले।
इसमें कोई दोराय नहीं कि भीलवाड़ा में कोटड़ी कस्बे में कौमी एकता का एक प्रभावी संदेश दिया है। सब जानते है कि बकरे की कुर्बानी के समय खून नालियों में बहता है और मांस और खाल के टुकड़े भी इधर-उधर बिखर जाते है। ऐसे माहौल में भगवान की सवारियां निकलती है तो उसमें शामिल लोगों की भावनाओं को ठेस लगती है। कोटड़ी के मुस्लिम भाईयों ने जिस प्रकार हिन्दुओं की भावना का ख्याल रखा,वह अपने आप में काबिले तारीफ है।
(एस.पी. मित्तल) (13-09-2016)
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