इस बार हिन्दू और मुसलमानों की धार्मिक बुराई एक साथ सामने आई। मोहर्रम और दशहरा एक साथ।
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देश में छोटी-छोटी बातों को लेकर भले ही हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने हो जाते हैं, लेकिन इसे संयोग ही कहा जाएगा कि इस बार हिन्दू और मुसलमानों की धार्मिक बुराई एकसाथ सामने आई है। पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत में जहां मुसलमान मोहर्रम की रस्में पिछले एक सप्ताह से कर रहे हैं, वहीं हिन्दू समुदाय के लोग 11 अक्टूबर को बुराई के प्रतीक रावण के पुतले को जलाएंगे। हिन्दू समुदाय के लोग भी पिछले एक सप्ताह से भगवान राम और रावण से जुड़ी लीलाओं को देख रहे हैं। यानि दोनों ही धर्मों के लोग अपने-अपने धर्म की बुराइयों को एकसाथ महसूस कर रहे हैं। मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को इराक के तत्कालीन शासक यजीद ने करबला के मैदान में युद्ध करने के लिए मजबूर किया। इमाम हुसैन के साथ मात्र 72 लोग थे, जबकि सामने यजीद की लम्बी फौज थी, लेकिन इसके बावजूद भी यजीद की सेना इमाम हुसैन को मार नहीं सकी, लेकिन चौथे दिन जब इमाम हुसैन नवाम पढ़ रहे थे, तब यजीद के सैनिकों ने इमाम हुसैन की गर्दन काट दी, यानि पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे को तब मारा गया जब वे नमाज पढ़ रहे थे। इतिहासकारों के अनुसार यजीद मोहम्मद साहब की शिक्षाओं से सहमत नहीं था, इसलिए उसने इमाम हुसैन को भी हिदायत दी कि वे मोहम्मद साहब की राह पर चलने का प्रचार नहीं करे, लेकिन जब इमाम हुसैन ने अपने नाना की राह पर चलने का संकल्प दोहराया तो यजीद ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इमाम हुसैन की शहादत को ही मोहर्रम के तौर पर याद किया जाता है, इसलिए मोहम्मद साहब को मानने वाले मुसलमान मोहर्रम में इमाम हुसैन की शहादत पर प्रायश्चित करते हैं। इसी प्रकार हिन्दू समुदाय के लोग भी बुराई पर अच्छाई की विजय के तौर पर दशहरा महोत्सव मनाते हैं। हिन्दू समुदाय में भी लंका के तत्कालीन राजा रावण को बुराई के तौर पर देखा जाता है। रावण ने छल-कपट कर भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण किया। इतना ही नहीं रावण ने राम को युद्ध करने के लिए भी मजबूर किया। बाद में भगवान राम ने जब बुराई के प्रतीक रावण का वध कर दिया तो फिर इसे बुराई पर अच्छाई की जीत कहा गया।
(एस.पी. मित्तल) (10-10-2016)
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