आखिर न्यायपालिका और सरकार में क्यों हो रहा है टकराव? क्या न्यायपालिका को अपने गिरेबां में नहीं झांकना चाहिए? अंकल जजों पर भी अंकुश लगाए सुप्रीम कोर्ट।

#1894
img_6403
========================
28 अक्टूबर को जजों की नियुक्ति को लेकर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को फटकार लगाई है। मुख्य न्यायाधीश टी.एस.ठाकुर ने कहा कि सिफारिश के बावजूद सरकार 9 महीने से फाइल को दबाए बैठी है। सरकार के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से जस्टिस ठाकुर ने कहा कि आप इसे नाक का सवाल न बनाएं। आप (सरकार) संस्थाओं को दो पाटों के बीच नहीं पीस सकते। हम बेहद धैर्य के साथ काम कर रहे हैं। हम ऐसी स्थिति नहीं चाहते, जहां न्यायपालिका तबाह हो जाए और अदालतों में ताले लगे जाएं। यह माना कि हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति नहीं होने देश के सभी राज्यों में मुकदमों का अंबार लग गया है। सुप्रीम कोर्ट की यह राय वाजिब है कि जजों की नियुक्ति जल्द होनी चाहिए। सब जानते हैं कि सरकार ने जजों की नियुक्ति का जो फार्मूला सुझाया था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। अब जजों की नियुक्ति के फार्मूले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ओर सरकार के बीच विवाद की स्थिति है। लेकिन जिन लोगों का अदालतों से पाला पड़ा है, वे अच्छी तरह जानते हैं कि अदालतों में क्या-क्या होता है। ऐसा नहीं कि सुप्रीम कोर्ट में बैठे भगवानों को हाई कोर्ट के भगवानों की करतूतें पता न हों। कई अवसरों पर बड़े भगवानों ने छोटे भगवानों की कार्यशैली पर नाराजगी जताई है। बड़े भगवानों को हाईकोर्ट के अंकल जजों के बारे में भी पता है। अंकल जज उन्हें माना जाता है जिनके पुत्र पुत्रियां या अन्य निकट के रिश्तेदार हाईकोर्ट में वकालात करते हैं। ईमानदारी इतनी की कोई जज अपने बेटे-बेटी को अपनी अदालत में पैरवी नहीं करने देता। जब से जजों की नियुक्ति अन्य प्रांतों में होने लगी है तब से तो अंकल जजों की ईमानदारी और बढ़ गई है। उदाहरण के लिए गुजरात का कोई जज राजस्थान में और राजस्थान का गुजरात हाईकोर्ट में नियुक्त हो तो राजस्थान के वकील बेटे, बेटी को गुजरात में और गुजरात वाले को राजस्थान में अंकल जज मिल जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट को इस बात का भी पता लगाना चाहिए कि अंकल जजों से जुड़े युवा वकीलों की स्थिति कैसी है। साधारण परिवार का युवा वकील वर्षों तक अपनी पहचान के लिए मोहताज रहता है, जबकि अंकल जजों की वजह से बेटे-बेटियां रातोंरात मालामाल हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी पता लगाए कि जजों के बेटे-बेटियां कितनी राज्य सरकारों के पैनल में शामिल है। खुद सुप्रीम कोर्ट में होईकोर्ट के जजों के बेटे-बेटियां विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से पैरवी कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि ऐसे बेटे-बेटियों में काबिलियत की कोई कमी हो, लेकिन इनसे भी ज्यादा काबिलियत वाले वकील मुंशीगिरी का काम कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट यह कह सकता है कि जब नेता का बेटा नेता बन सकता है तो जज का बेटा वकील क्यों नहीं बन सकता? सुप्रीम कोर्ट का यह तर्क 100 प्रतिशत सही है, लेकिन नेता और उसके बेटे की आलोचना सार्वजनिक तौर पर हो सकती है तथा ऐसे भ्रष्ट नेताओं को कोर्ट में भी घसीटा जा सकता है, लेकिन न्यायालय की अवमानना के डर की वजह से बेटे-बेटियों की कोई आलोचना नहीं हो सकती और न ही किसी कोर्ट में घसीटा जा सकता है।
(एस.पी. मित्तल) (28-10-2016)
नोट- फोटोज मेरी वेबसाइट www.spmittal.in
(www.spmittal.in) M-09829071511
www.facebook.com/SPMittalblog

Print Friendly, PDF & Email

You may also like...