सूफी वादियों का विरोध दरकिनार कर जमीयत के राष्ट्रीय अधिवेशन पर दरगाह कमेटी और प्रशासन में सहमति। देश के वर्तमान माहौल में अजमेर में अधिवेशन का होना खास मायने रखता है।

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पाकिस्तान की सीमा पर बढ़ते तनाव, भोपाल में सिमी के 8 फरार कैदियों का एनकांउटर, तीन तलाक की प्रथा को रोकने के लिए केन्द्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा, देश कॉमन सिविल कोड पर विधि आयोग की राय शुमारी आदि के बीच अजमेर में 11, 12 व 13 नवम्बर को जमीयत उलेमा ए हिन्द का राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा है। चूंकि अजमरे में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की विश्व विख्यात दरगाह है, इसलिए जमीयत का यह अधिवेशन खास मायने रखता है। इस अधिवेशन को लेकर दरगाह कमेटी और जिला प्रशासन में सहमति बन गई है। इस सहमति में सूफी वादियों के विरोध को दरकिनार कर दिया है। ऑल इंडिया उलेमा मशायख बोर्ड से जुड़े सूफी वादियों ने जिला प्रशासन और दरगाह कमेटी के समक्ष प्रदर्शन कर मांग की थी कि अजमेर में जमीयत के अधिवेशन की अनुमति न दी जाए। बोर्ड की ओर से कहा गया कि जमीयत वहाबी विचार धारा की है। जो ख्वाजा साहब के सूफीवाद से मेल नहीं खाते, लेकिन जमीयत के देशव्यापी दबाब को देखते हुए दरगाह कमेटी और प्रशासन ने अधिवेशन पर सहमति जता दी है। तीन और चार नवम्बर को जमीयत के प्रतिनिधियों के साथ लगातार हो रही बैठकों में अधिवेशन की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया है।
अजमेर में सिटी मजिस्टेट के पद पर काम कर चुके वरिष्ठ आरएएस हरफूल सिंह यादव को विशेष तौर पर जमीयत के अधिवेशन के लिए नियुक्त किया गया है। अब अधिवेशन की अनुमति को लेकर कोई विवाद नहीं रहा है। एनसीसी के राष्ट्रीय कैम्प को आधार मानकर जिस प्रशासन ने पूर्व में अनुमति देने से इंकार कर दिया था,उसी प्रशासन ने अब एनसीसी के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि कैम्प को जमीयत के अधिवेशन के बाद शुरू किया जाए। यदि देशभर की छात्राएं तय कार्यक्रम के अनुरूप 7 नवम्बर को अजमेर आ जाएं तो छात्राओं को कायड़ विश्राम स्थली के बजाए किसी धर्मशाला में ठहरा दिया जाए। इसी प्रकार ख्वाजा साहब की दरगाह से जुड़ी कमेटी के नाजिम ले.कर्नल मंसूर अली खान ने सम्पूर्ण विश्राम स्थली को उपयोग की छूट जमीयत को दे दी है।
वायदे पर संशय:
दरगाह कमेटी की विश्राम स्थली पर अधिवेशन करने के लिए जमीयत के प्रतिनिधियों ने भरोसा दिलाया है कि अधिवेशन में न तो सरकार के खिलाफ कोई प्रस्ताव पास किया जाएगा और न ही अधिवेशन में कोई विवाद की स्थिति उत्पन्न होगी। जानकारों की माने तो जमीयत के इस वायदे पर संशय हैं। जमीयत से जुड़े पदाधिकारी पहले ही तीन तलाक और कॉमन सिविल कोड पर सरकार की पहल को खारिज कर चुके हैं। जमीयत ने इसे मुसलमानों की धार्मिक परंपराओं में दखल माना है। स्वाभाविक है कि जब जमीयत की विचार धारा वाले हजारों लोग अधिवेशन में भाग लेंगे तो देश के वर्तमान हालातों और मुद्दों पर चर्चा तो होगी ही। ऐसे में जमीयत के स्थानीय प्रतिनिधियों के वायदे कितने मायने रखते हैं, इसका पता 12 व 13 नवम्बर को खुले अधिवेशन में ही चलेगा। जमीयत के प्रतिनिधियों ने स्वयं माना है कि अधिवेशन में करीब चालीस हजार लोग देशभर से आएंगे।
बीकानेर में बड़ा प्रदर्शन
4 नवम्बर को राजस्थान के बीकानेर शहर में हजारो मुसलमानों ने कलेक्ट्रेट पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री के नाम कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन में कहा गया कि कॉमन सिविल कोड को लागू कर मुसलमानों के शरीयत कानून में दखल न दिया जाए, इस विरोध में बड़ी संख्या में बुरका धारी मुस्लिम महिलाएं भी शामिल थीं। जिन्होंने तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगाने का कड़ा विरोध किया। यह विरोध भारतीय मुस्लिम कमेटी की ओर से आयोजित किया गया।
(एस.पी.मित्तल) (04-11-16)
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