वसुंधरा मंत्रिमंडल के फेरबदल का असर अजमेर पर नहीं हुआ। ब्लॉग में लिखे पर लगी मुहर। पर अब देवनानी और भदेल को मिल कर करना होगा काम।

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वसुंधरा मंत्रिमंडल के फेरबदल का असर अजमेर पर नहीं हुआ।
ब्लॉग में लिखे पर लगी मुहर। पर अब देवनानी और भदेल को मिल कर करना होगा काम।
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राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे में राजनेताओं पर लिखना चुनौतीपूर्ण काम होता है। इसे ईश्वर की कृपा ही कहा जाएगा कि 4 दिसम्बर को मैंने अजमेर जिले के राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल पर जो ब्लॉग लिखा, उस पर 10 दिसम्बर को मुहर लग गई। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मंत्रिमंडल में जो फेरबदल किया, उसका असर अजमेर पर नहीं पड़ा। यानि देवनानी और भदेल का राज्यमंत्री का पद बरकरार है। फेरबदल की चर्चाओं में जब देवनानी और भदेल को हटाए जाने की अटकलें लग रही थी, तब 4 दिसम्बर को मैंने लिखा था कि इन दोनों को नहीं हटाया जाएगा। अब जब भदेल और देवनानी का मंत्री पद बरकरार रहा है, तो इन दोनों का भी यह दायित्व बनता है कि अब एक होकर अजमेर के विकास में सकारात्मक भूमिका निभाएं। सब जानते हैं कि इन दोनों मंत्रियों के राजनीतिक संबंध बेहद खराब हैं। इतने खराब की, व्यक्तिगत संबंध भी बिगड़ गए हैं। दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन जब मीडिया में दोनों के विवादों की खबरें आती हैं तो दोनों नाराज हो जाते हैं। यानि दोनों मंत्री विवाद करें, लेकिन मीडिया में खबर न आए। देवनानी और भदेल किस तरह से राजनीति करेें, यह उनकी अपनी सोच हैं। लेकिन दोनों को यह समझना चाहिए कि विवादों से अजमेर में भाजपा को नुकसान हो रहा है। जानकारों की माने तो फेरबदल की चर्चाओं के बीच मुख्यमंत्री राजे ने दोनों को एकजुट होने की हिदायत भी दी है। यह भी सही है कि देवनानी और भदेल ने अपने-अपने विभागों में उल्लेखनीय काम किए हैं। शायद इसलिए दोनों का मंत्री पद बरकरार रह गया। अब जब अजमेर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है तो दोनों का मिलकर काम करना बेहद जरूरी है।
देवनानी से आगे निकले कृपलानी:
हालांकि वासुदेव देवनानी स्कूली शिक्षा के स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री हैं, लेकिन 10 दिसम्बर को चित्तौड़ से भाजपा के विधायक श्रीचंद कृपलानी को केबिनेट मंत्री बनाया गया है। देवनानी और कृपलानी दोनों सिंधी समुदाय से संबंध रखते हैं। राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो कृपलानी आगे निकल गए हैं। पिछले दिनों कृपलानी को चित्तौड़ यूआईटी के अध्यक्ष का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन तब कृपलानी ने स्वीकार नहीं किया। यदि कृपलानी अध्यक्ष बन जाते तो आज केबिनेट मंत्री की शपथ नहीं ले पाते।
(एस.पी.मित्तल) (10-12-16)
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