अच्छे समाज के लिए चरित्र निर्माण जरूरी। स्वामी अनादि सरस्वती के संन्यास दिवस पर बोले संत महात्मा। =

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अजमेर के शास्त्री नगर स्थिति चिति संस्थान के सभागार में 6 जनवरी को स्वामी अनादि सरस्वती का 9वां संन्यास दिवस सादगी के साथ मनाया गया। इस अवसर पर उपस्थित अनादि सरस्वती के गुरु स्वामी धर्म प्रेमानंद जी सरस्वती, संन्यास आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी शिव ज्योतिषानंद तथा संस्कृत के विद्वान 96 वर्षीय पंडित रामचन्द्र शास्त्री ने कहा कि यदि अच्छा समाज बनाना है तो चरित्र निर्माण जरूरी है। आज समाज में जो बुराईयां आ गई हैं, इसका मुख्य कारण युवा पीढ़ी में भारतीय संस्कृति के अनुरूप संस्कारों का नहीं होना है। संत महात्मा ने कहा कि घर से ही बच्चों में संस्कार देने चाहिए। जो बच्चे अपने घर से संस्कार सीखते हैं वे बाहर जाने के बाद भी बिगड़ते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हमें धर्म के अनुरूप आचरण करना चाहिए। धर्म ही हमें यह सिखाता है कि क्या गलत है और क्या सही। संतों ने स्वामी अनादि सरस्वती को आशीर्वाद देते हुए उम्मीद जताई कि वे अपनी आध्यात्मिक शक्ति से समाज में चरित्र निर्माण करेंगी। संतों ने स्वामी अनादि की आध्यात्मिक यात्रा की सफलता की भी कामना की।
धर्म का पालन जरूरी:
समारोह में स्वामी अनादि सरस्वती ने कहा कि आज समाज में जो विकृतियां आ गई हैं, उनका मुकाबला धर्म की शिक्षा से ही किया जा सकता है। चिति प्रतिष्ठान की ओर से समय-समय पर संस्कार शिविर लगाए जाते हैं। इन शिविरों में ध्यान और योग के माध्यम से मस्तिष्क को नियंत्रित करना सिखाया जाता है। व्यक्ति जब मन और मस्तिष्क को नियंत्रित कर लेता है, तब धर्म पर चलने की राह आसान हो जाती है। अब उनका सम्पूर्ण जीवन में चरित्र निर्माण को समर्पित रहेगा। उनके संन्यास दिवस पर साधु संतों के आगमन के प्रति स्वामी अनादि ने आभार जताया।
समारोह में अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा और उनकी पत्नी श्रीमती शशि हेड़ा ने पूरे श्रद्धाभाव से स्वामी अनादि के चरणों में शीश नवाया। संन्यास दिवस पर हेड़ा दम्पत्ति ने शॉल आदि ओढ़ा कर स्वामी अनादि से अशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर हेड़ा ने कहा कि समाज में ऐसे व्यक्तियों का निर्माण होना चाहिए जो देश की सेवा कर सके। समारोह में मैंने कहा कि साधु संत ही देश को आध्यात्म के मार्ग पर ले जा सकते हैं और जब लोग आध्यात्मक के मार्ग पर चलेंगे तो समाज भी सुंदर बन जाएगा। मैंने इस धार्मिक और आध्यात्मिक समारोह में देश के सुप्रसिद्ध शायर आर.के.मजबूर की शायरी की निम्न लाइनें सुनाई।
आसमां पे तेरी हस्ती है,
जमीं पर मेरी बस्ती है।
थोड़ा तू झुक जा,
थोड़ा में उठता हंू।
मिलने की सूरत यही निकलती है।
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एक घूंट पी लाई थी उसने
सारा आलम अपना था
मैं तरस रहा बाकी को
वो पीना था या चखना था।
(एस.पी.मित्तल) (07-01-17)
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