श्रीनगर के बजाए दिल्ली में हुआ कश्मीरी युवकों का सम्मेलन। संघ के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की पहल। =
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श्रीनगर के बजाए दिल्ली में हुआ कश्मीरी युवकों का सम्मेलन। संघ के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की पहल।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की ओर से 7 जनवरी को दिल्ली में कश्मीर के युवाओं का एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में मंच के राष्ट्रीय संयोजक इन्द्रेश कुमार और पीएम दफ्तर के मंत्री जितेन्द्र सिंह खासतौर से उपस्थित रहे। इस सम्मेलन में कश्मीर के उन युवाओं ने भाग लिया, जो कश्मीर के बजाय देश के दूसरे राज्यों में नौकरी अथवा पढ़ाई कर रहे हैं। वैसे तो यह सम्मेलन कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में होना चाहिए था, लेकिन इसे कश्मीर के बिगड़े हालात ही कहा जाएगा कि अपने राज्य के युवाओं का सम्मेलन दूसरे राज्य में करना पड़ रहा है। हालांकि संघ के मंच की यह पहल सकारात्मक कही जा सकती है, लेकिन आज देश के सामने कश्मीर घाटी के बिगड़े हालात की सबसे बड़ी चुनौती है। घाटी में जब से हिन्दुओं को पीट-पीट कर भगा दिया गया, तब से कश्मीर घाटी पर उन अलगाववादियों का कब्जा हो गया है, जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं। यही वजह है कि आज घाटी में सुरक्षा बलों पर लगातार हमले हो रहे हैं। अफसोसजनक बात तो यह है कि कश्मीर के युवा भी हालातों को सुधारने के लिए कोई ठोस पहल नहीं कर रहे। कश्मीर से जो युवक शिफ्ट हो गए वे अब कश्मीर छोड़कर देश के दूसरे हिस्सो में नौकरी कर रहे हैं। अच्छा हो कि ऐसे युवक कश्मीर में ही रहकर हालातों को सुधारने का काम करें। जब तक कश्मीर के युवा आगे नहीं आएंगे, तब तक हालात सुधारना मुश्किल है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने भले ही दिल्ली में कश्मीर युवकों का सम्मेलन कर लिया हो, लेकिन कश्मीरी युवकों को ऐसा सम्मेलन श्रीनगर में ही करना चाहिए। यह माना कि घाटी के हालात बिगाडऩे में पाकिस्तान का खुला दखल है और पाकिस्तान अपनी हरकतों से कभी भी बाज नहीं आएगा। लेकिन कश्मीर के युवाओं को ठोस भूमिका निभाकर पाकिस्तान के दखल को न केवल बंद करवाना पड़ेगा बल्कि गुमराह युवकों को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाना पड़ेगा। इस मामले में सीएम महबूबा मुफ्ती भी प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं। पूर्व में महबूबा अलगाववादियों के साथ संबंध रहा है। ऐसे में महबूबा पहल कर कश्मीर में उन लोगों को एकजुट कर सकती हैं, जो भारत में ही रहने के पक्षधर है। यह सही है कि कश्मीर के सभी लोग भारत से अलग होना नहीं चाहते, लेकिन अलगाववादियों और आतंकवादियों के दबाव और डर की वजह से हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। भारत में ही रहने वाले कश्मीरियों की हिम्मत महबूबा मुफ्ती बन सकती है। चूंकि इस समय महबूबा भाजपा के सहयोग से सरकार चला रही हैं, इसलिए केन्द्र सरकार का भी उन्हें पूरा समर्थन मिलेगा। कश्मीर के हालात सुधारने के लिए यह उपयुक्त समय है। यदि इस समय का भी लाभ कश्मीरियों ने नहीं उठाया तो फिर हालात पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे।
एस.पी.मित्तल) (08-01-17)
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