राजनेताओं को यूपी नहीं पहले कश्मीर पर ध्यान देना चाहिए। यूएन चलो मार्च के कारण हालात बेहद खराब।
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10 फरवरी को भी विधानसभा चुनाव को लेकर यूपी में घमासान मचा रहा। पीएम नरेन्द्र मोदी से लेकर सीएम अखिलेश यादव तक राजनीतिक जुमलेबाजी करते रहे। वहीं कश्मीर घाटी में 10 फरवरी को हालात बेहद नाजुक रहे। हमेशा की तरह अलगाववादियों ने जुम्मे की नमाज के बाद यूएन चलो का आह्वान किया। अलगाववादी नेता अपने समर्थकों के साथ श्रीनगर स्थित यूएन के कार्यालय में जाकर ज्ञापन देना चाहते थे। जुम्मे की नमाज के लिए मस्जिदों में बड़ी संख्या में नमाजी आते हैं। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए ही अलगाववादी नेताओं ने यूएन चलो का आह्वान किया। सुरक्षा बलों ने बड़ी मशक्कत से अलगाववादी नेताओं को रोका। मीरवाइज, अलीशाह जिलानी जैसे नेताओं को घरों पर नजरबंद करना पड़ा। श्रीनगर के अधिकांश इलाकों में कफ्र्यू लगाना पड़ा। सुरक्षा बलों को आशंका थी कि यदि सड़कों पर जुलूस निकला तो हिंसा भड़क उठेगी,जिसकी वजह से हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। 10 फरवरी को कश्मीर घाटी के हालात कितने नाजुक थे, इसका अंदाजा बनिहाल से बारामूला के बीच रेल सेवा को रद्द करने से लगाया जा सकता है। जो राजनेता इन दिनों यूपी में जुमलेबाजी कर रहे हैं, उन्हें पहले कश्मीर के हालात सुधारने की पहल करनी चाहिए। अलगाववादियों की वजह से कश्मीर का पर्यटन उद्योग पूरी तरह से चौपट हो गया है। अलगाववादियों के नेताओं के बच्चे तो विदेशों में अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन आम कश्मीरी के बच्चे शिक्षा तो दूर रोजगार के लिए मोहताज हैं। क्या जो राजनेता यूपी में हिन्दू और मुसलमान मतदाताओं को विकास के सपने दिख रहे हैं, वह कश्मीर में जाकर हालात को सुधारने का काम नहीं कर सकते? यूपी चुनाव में सभी राजनीतिक दल हिन्दू-मुस्लिम के बीच भाईचारे की बात कर रहे हैं, जबकि सब जानते हैं कि चार लाख हिन्दुओं को कश्मीर घाटी से पीट पीट कर भगा दिया गया। आज सम्पूर्ण कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई है। हालात इतने खराब हैं कि अद्र्ध सैनिक बल भी स्थिति नियंत्रण में नहीं कर पा रहे। अलगाववादी नेता हमारे कश्मीर में तो हालात बिगाडऩे पर तुले हुए हैं, लेकिन वे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुसलमानों की चिंता नहीं करते। पीओके के मुसलमानों पर पाकिस्तान की सेना बर्बरता पूर्वक अत्याचार करती है, लेकिन एक भी अलगाववादी नेता पाकिस्तान की आलोचना नहीं करता। अच्छा हो कि मीरवाइज, अलीशाह जिलानी जैसे अलगाववादी नेता कुछ दिनों के लिए पीओके में भी रहे, ताकि उन्हें पता चल सके कि हमारे कश्मीर और पाकिस्तान के कश्मीर में कितना फर्क है।
एस.पी.मित्तल) (10-02-17)
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