प्रायोगिक परीक्षाओं में अंकों के कारोबार पर क्यों चुप है शिक्षा मंत्री देवनानी? शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं की निष्पक्षता पर सवाल।
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19 फरवरी को राजस्थान के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि 21 व 22 फरवरी को प्रदेश भर के स्कूलों में मिड डे मील और शैक्षिक गुणवत्ता की जांच होगी। देवनानी मिड डे मील की तो जांच करवा रहे हैं, लेकिन शिक्षा बोर्ड की प्रायोगिक परीक्षाओं में अंकों के कारोबार की खबरों पर चुप है। 19 फरवरी को ही ईटीवी पर एक ऑडियो प्रसारित हुआ है। इस ऑडियो में दौसा का एक शिक्षक भीलवाड़ा के स्कूल के शिक्षक से खुलेआम रिश्वत मांग रहा है। बोर्ड ने दौसा के इस शिक्षक को भीलवाड़ा के एक सरकारी स्कूल में भूगोल की प्रायोगिक परीक्षा के लिए परीक्षक नियुक्त किया था। यह शिक्षक स्कूल के विद्यार्थियों को अच्छे अंक देने के लिए प्रति परीक्षार्थी 150 रुपए की मांग कर रहा है। स्कूल की प्रधानाध्यापिका ने आरोप लगाया है कि दौसा के परीक्षक ने धमकी दी कि यदि रिश्वत नहीं दी गई तो बच्चों को फेल कर दिया जाएगा। अजमेर स्थित शिक्षा बोर्ड के मुख्यालय पर आए दिन ऐसी शिकायतें मिल रही है। बोर्ड के अधिकारी खुद हैरान है कि जिन शिक्षकों को परीक्षक बनाया गया है, उनमें से अनेक खुले आम स्कूल प्रबंधन से अंकों के बदले रिश्वत मांग रहे हैं। निजी स्कूलों का प्रबंधन तो अपने स्कूल का परिणाम अच्छा रखने के लिए मुंह-मांगी रिश्वत दे रहा है लेकिन सरकारी स्कूलों के सामने रिश्वत की राशि को लेकर समस्याएं खड़ी हो रही है। हालत इतनी खराब है कि गरीब विद्यार्थियों से सौ-सौ रुपए एकत्र कर परीक्षकों के खाने-पीने के इंतजाम करने पड़ रहे हैं। शिक्षा बोर्ड ने कुछ परीक्षकों के खिलाफ कार्यवाही भी की है, लेकिन बोर्ड की कार्यवाही नाकाफी है। शिक्षा राज्यमंत्री देवनानी को चाहिए कि अंकों के कारोबार को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए। अंकों के कारोबार में शिक्षक संघों की भी ईमानदारीपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। जब शिक्षकों की मांगों के लिए संघ आन्दोलन करते हैं तो ऐसे शिक्षक संघों की यह भी जिम्मेदारी है कि विद्यार्थियों से अंकों के नाम पर वसूली न हो। कुछ शिक्षकों की वजह से संपूर्ण राजस्थान की शिक्षा बदनाम हो रही है। शिक्षा मंत्री देवनानी अपने विभाग की छवि को लेकर हमेशा चिन्ता दिखाते हैं। ऐसे में देवनानी की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
(एस.पी.मित्तल) (19-02-17)
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