तो क्या आतंकियों के भरोसे छोड़ दें कश्मीर को? कैसे सुधरेंगे हालात।
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इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि 28 मार्च को जब कश्मीर के बडग़ाम में सुरक्षा बल आतंकियों की गोलियों का सामना कर रहे थे, तब सैंकड़ों कश्मीरी युवाओं ने सुरक्षा बलों पर पत्थर फैंकने शुरू कर दिए। आमतौर पर जब कभी आतंकियों के साथ मुठभेड़ होती है तो देश के नागरिक सुरक्षा बलों की मदद करते हैं। लेकिन कश्मीर घाटी में हर बार उलटा होता है। बडगाम में भी पत्थरबाजी में 30 सुरक्षाकर्मी जख्मी हो गए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक तरफ आतंकियों की गोलियां तो दूसरी तरफ पत्थर। ऐसे में सुरक्षा जवान किस तरह से मुकाबला करंे? आत्मरक्षा में जब सुरक्षा बलों ने पत्थरबाजों पर गोली चलाई तो तीन पत्थरबाजों की मौत हो गई। अब इन मौतों को लेकर कश्मीर में बंद करवाया गया है। 29 मार्च को इस बंद की वजह से विश्वविद्यालयों की परीक्षा नहीं हुई और न ही ट्रेनों का आवागमन। गंभीर बात तो यह है कि पत्थरबाजी में जो 30 सुरक्षाकर्मी जख्मी हुए, उनकी कोई सुध नहीं ले रहा है। सवाल उठता है कि आखिर कश्मीर में हालात कैसे सुधारेंगे? सीएम महबूबा मुफ्ती खुद बेबस और लाचार नजर आती है। ऐसा प्रतीत होता है कि महबूबा सहित अधिकांश राजनेताओं का अब घाटी पर नियंत्रण नहीं है। घाटी में ऐसे लेाग असरदार हो गए हैं, जो खुले आम पाकिस्तान से आए आतंकियों का समर्थन करते हैं। समझ में नहीं आता कि घाटी के मुसलमान आतंकवादियों का साथ क्यों दे रहे हैं। सब जानते हैं कि खुद पाकिस्तान आतंकवाद से त्रस्त है। आईएस जैसे संगठन पाकिस्तान की मस्जिदों और दरगाहों में विस्फोट कर रहे हैं। यदि कश्मीर के युवाओं ने पाकिस्तान और आतंकियों का समर्थन बंद नहीं किया तो हालात और बिगड़ेंगे। युवाओं को चाहिए कि वे अपनी समस्याओं को लेकर सरकार से वार्ता करें। जिन राजनीतिक दलों ने लंबे समय तक कश्मीर में शासन किया है, उन्हें यह बताना चाहिए कि क्या कश्मीर में एक भी नागरिक देशभक्त नहीं बचा है? सब जानते हैं कि सुनियोजित षडय़न्त्र के तहत 4 लाख हिन्दुओं को घाटी से पीट-पीट कर भगा दिया गया है। आज सम्पूर्ण कश्मीर घाटी हिन्दूविहीन हो गई है और इसीलिए हमारे सुरक्षा बलों को सामने से आतंकवादियों की गोली और पीछे से अलगाववादियों के पत्थर खाने पड़ रहे हैं।
(एस.पी.मित्तल) (29-03-17)
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