गोली और पत्थर खाने वाले जवानों के साथ हमदर्दी क्यों नहीं? क्या सुरक्षा बलों के जवान इंसान नहीं है?

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18 अप्रैल को भी कश्मीर घाटी के हालात खराब रहे। सरकारी स्तर पर ही स्कूल-कॉलेजों में तालाबंदी रखी गई। 17 अप्रैल को स्कूल यूनिफार्म पहने और पीठ पर बस्ता टांगे बच्चों ने सुरक्षा बलों पर पत्थराव किया। अब तक युवाकों को ही पत्थर फेंकते देखा गया था, लेकिन अब स्कूली बच्चे भी पत्थरबाजी में शामिल हो गए हैं। मानवाधिकारों का हनन न हो इसलिए पत्थरबाजों पर गोली भी नहीं चलाई जा सकती। यह बात अलग है कि इस पत्थरबाजी के बीच पाकिस्तान से प्रशिक्षित होकर आए आतंकी हमारे सुरक्षा बलों के जवानों पर गोली चला कर मौत के घाट उतार देते हैं। इन दिनों टीवी चैनलों पर एक फोटो को प्रमुखता के साथ दिखाया जा रहा है। इस फोटो में सेना की एक जीप पर एक युवक को बांध रखा है। इस फोटो के माध्यम से यह प्रदर्शित किया किा जा रहा है कि सेना ने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। जबकि सेना के प्रवक्ता का कहना है कि जब भीड़ ने एक पुलिस चौकी पर हमला कर दिया था, तब जवानों को मौत के मुंह में जाने से बचाने के लिए ही एक युवक को जीप पर बैठाया गया। युवक पर किसी भी कश्मीरी ने न तो पत्थर फेेंके और न कोई हमला किया। ऐसे में अनेक जवानों की जान बच गई। यदि सुरक्षा बल गोली चलाते तो अनेक कश्मीरी युवक मारे जाते। सुरक्षा बलों ने स्वयं और कश्मीरी युवकों की जान बचाने का बीच का रास्ता निकाला। जिस युवक को जीप पर बैठाया गया वह अब आजाद है। यानि इस युवक को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया। सवाल उठता है कि जो लोग सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकते हैं। उनके साथ तो हमदर्दी दिखाई जाती है, लेकिन जो जवान पत्थर खाने के साथ-साथ आतंकियों की गोली भी खाते हैं उनके साथ कोई सहानुभूति नहीं दिखाई जाती। क्या सुरक्षा बलों के जवान इंसान नहीं हैं? जबकि सुरक्षा बल के जवान तो देश की अखंडता बनाए रखने के लिए मुस्तैद हैं। जो राजनेता पत्थरबाजों और आतंवादियों के साथ हमदर्दी रखते हैं, उन्हें यह भी बताना चाहिए कि आखिर सुरक्षा बलों का कसूर क्या है? लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार जो दिशा निर्देश देती है, उसी के अनुरूप सुरक्षा बल ड्यूटी देते हैं। जब जवान ने देश की सुरक्षा करने की शपथ ली है तो फिर वह अपनी शपथ को पूरा करेगी ही। कुछ हिमायती यह कहते हैं कि पत्थरबाज कश्मीर की आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन ऐसे हिमायती यह भूल जाते हैं कि एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत कश्मीर से चार लाख हिन्दुओं को पीट-पीट कर भगा दिया गया है। आज यदि हिन्दू समुदाय के लोग कश्मीर में होत तो सुरक्षा बलों पर इस तरह पत्थर नहीं फेंके जाते।
फारुख अब्दुल्ला का दोहरा चरित्र:
कश्मीर में हाल ही में हुए एक उपचुनाव में जीत कर पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला एक बार फिर लोकसभा में पहुंच गए हैं। ये फारुख अब्दुल्ला वो ही हैं, जिन्होंने पिछले दिनों कहा था कि कश्मीर के युवक अपनी भूमि की आजादी के लिए लड़ रहे हैं। फारुख अब्दुल्ला पहले भी कहे चुके हैं कि कश्मीर मुद्दे को पाकिस्तान के साथ बैठकर सुलझाया जाए, लेकिन अब वही फारुख अब्दुल्ला भारतीय संविधान की शपथ लेकर सांसद बन गए हैं। कश्मीर के लोगों को इस दोहरे चरित्र को समझना चाहिए। फारुख अब्दुल्ला जैसे नेता सिर्फ हिमायत कर सत्ता का सुख भोगते हैं। यदि कश्मीरियों के साथ कोई हमदर्दी होती तो फारुख अब्दुल्ला भारतीय संविधान की शपथ लेकर चुनाव नहीं लड़ते। कश्मीरियों को झूठे वायदे करते हुए ही अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढिय़ां मुख्यमंत्री बन चुकी हैं।
(एस.पी.मित्तल) (18-04-17)
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