तो सरकारी स्कूलों में कहां से आएंगे पढऩे वाले बच्चे? 8 हजार प्राइवेट स्कूलों में मुफ्त में भी पढऩा नहीं चाहते बच्चे। ===============
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तो सरकारी स्कूलों में कहां से आएंगे पढऩे वाले बच्चे?
8 हजार प्राइवेट स्कूलों में मुफ्त में भी पढऩा नहीं चाहते बच्चे।
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राजस्थान के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने और छोटे बच्चों को पहली कक्षा में प्रवेश दिलाने के लिए गत 26 अप्रैल से प्रदेश भर में अभियान चल रहा है। पहले चरण का अभियान 9 मई को समाप्त होगा। दूसरा चरण 20 जून से 5 जुलाई तक चलेगा। लेकिन सवाल उठता है कि सरकारी स्कूलों में पढऩे के लिए बच्चे कहां से आएंगे? 2 मई को प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने जयपुर में शिक्षा के अधिकार कानून के अंतर्गत प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश के लिए लॉटरी निकाली। लॉटरी निकालने के बाद देवनानी ने जो आंकड़े बताएं चौकाने वाले हैं। देवनानी ने बताया कि सरकार ने प्रदेश की 33 हजार प्राइवेट स्कूलों में 2 लाख 50 हजार सीटों का प्रावधान किया था। लेकिन सरकार को 24 हजार स्कूलों के लिए 1 लाख 71 हजार आवेदन ही प्राप्त हुए। यानि 80 हजार सीटें खाली रह गई। सवाल उठता है कि जब प्राइवेट स्कूलों में मुफ्त में भी पढऩे के लिए बच्चे नहीं आ रहे हैं तो फिर सरकारी स्कूलों में पढऩे के लिए बच्चे कहां से आएंगे? सरकार के लिए यह चिन्ता का विषय है। सब जानते हैं कि सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए शिक्षकों पर किस तरह दबाव डाला जाता है। ऐसी भी शिकायतें मिली हैं कि दबाव के चलते स्कूल के शिक्षक विद्यार्थियों के नाम फर्जी तरीके से रजिस्टर में लिख लेते हैं। ऐसे फर्जी विद्यार्थियों की फीस भी शिक्षक अपनी जेब से जमा करवाते हैं। सरकार को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि राजस्थान में शिक्षा की स्थिति इतनी दयनीय है। देवनानी ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उन्हीं से यह भी पता चलता है कि प्रदेश में 8 हजार प्राइवेट स्कूलें ऐसी हैं, जिनमें मुफ्त में भी बच्चे पढऩा नहीं चाहते।
लॉटरी का कार्य सराहनीय :
आरटीई कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को लॉटरी के जरिए प्रवेश दिलवा कर सरकार ने सराहनीय कार्य किया है। पूर्व में प्राइवेट स्कूलों को लेकर शिकायतें मिलती थी, लेकिन इस बार स्कूली शिक्षा मंत्री देवनानी के प्रयासों से राज्य स्तर पर ऑनलाइन आवेदन मांगे गए। सरकार ने स्कूलों की वरीयता के आधार पर प्रवेश का निर्धारण कर दिया। इससे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी खत्म हुई, वहीं प्रवेश की प्रक्रिया भी पारदर्शी बनी।
(एस.पी.मित्तल) (03-05-17)
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