एक हजार किलो वजन वाली तोप का चोरी होना बताता है कि चोरों को अजमेर पुलिस का डर नहीं है। अब ऐतिहासिक तोप की बरामदगी की चुनौती।
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एक हजार किलो वजन वाली तोप का चोरी होना बताता है कि चोरों को अजमेर पुलिस का डर नहीं है। अब ऐतिहासिक तोप की बरामदगी की चुनौती।
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अजमेर जिले के सरवाड़ कस्बे से 10 किलोमीटर दूर फतेहगढ़ के ऐतिहासिक किले से 10 और 11 जून की रात को ऐतिहासिक तोप चोरी हो गई है। कोई एक हजार किलो वजन की इस तोप को शातिर चोर बड़े आराम से उठाकर ले गए। अब दो दिन गुजर जाने के बाद भी तोप का कोई सुराग नहीं मिला है। भारी वजन वाली तोप का चोरी होना यह दर्शाता है कि अजमेर पुलिस का चोरों के मन में कोई डर नहीं है। जब शातिर चोर एक हजार किलो वजन की तोप चोरी कर सकते हैं तो फिर आम घरों की तो बिसात क्या है। जिन लोगों के घरों में 2-4 लाख के सामान की चोरी होती है, उन्हें समझना चाहिए कि चोर तो एक-एक हजार किलो वजन की तोप की चोरी कर रहे हैं। जब एक किले में रखी तोप की सुरक्षा नहीं हो सकती तो फिर घरों की सुरक्षा अजमेर पुलिस कैसे करेगी। सवाल उठता है कि आखिर रात्रि के समय पुलिस की गश्त का क्या हुआ? क्या जब इतनी बड़ी तोप को ले जाया जा रहा था, तब अजमेर पुलिस सोती रही। किसी भी पुलिसकर्मी ने तोप को नहीं देखा या फिर जागने वाले ने भी आंखे बंद कर ली? शातिर चोर तोप को अपने कंधों पर तो नहीं ले गए होंगे। तोप को ले जाने के लिए ट्रक अथवा ट्रोले की मदद ली गई होगी। स्वाभाविक है कि किले से निकल कर ऐसा वाहन सरवाड़ शहर में या अन्य स्थान से गुजरा ही होगा। अब अजमेर पुलिस के सामने बरामदगी की चुनौती हो गई है। ऐसा न हो कि अजमेर पुलिस आनंदपाल की तरह एक हजार किलो वजन की तोप को भी न ढ़ूंढ पाए। तोप बरामदगी में जितना विलम्ब होगा, उतनी ही अजमेर पुलिस की जगहंसाई होगी। भले ही पुलिस अभी तोप चोरी की वारदात को गंभीरता से न ले। लेकिन आने वाले दिनों में तोप चोरी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस की लापरवाही का मुद्दा बनेगी।
पुरातत्व विभाग की अनदेखी :
तोप चोरी होने में पुरातत्व विभाग की घोर लापरवाही भी है। फतेहगढ़ किले के रख-रखाव का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है। लेकिन पुरातत्व विभाग इस किले की अनदेखी ही करता है। चूंकि इस किले पर किसी घराने का दावा नहीं रहा इसलिए आजादी के बाद से ही यह किला लावारिस पड़ा रहा। इतिहास के जानकारों के अनुसार फतेहगढ़ के किले पर राजा मानसिंह का कब्जा बताया गया। लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने की वजह से आजादी के बाद किले पर दावा करने के लिए कोई नहीं आया। राजस्व रिकार्ड में सरकारी दर्ज हो जाने के बाद ही किले को पुरातत्व विभाग को सौंपा गया। इस किले का इतिहास 500 वर्ष पुराना बताया जा रहा है।
(एस.पी.मित्तल) (12-06-17)
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