विपक्ष का पीएम पद का एक औेर उम्मीदवार धराशायी। अब राहुल गांधी और ममता बचे हैं। ==========
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सवाल यह नहीं है कि 27 जुलाई को नीतिश कुमार छठी बार बिहार के सीएम का पद संभाल लिया है। असल सवाल यह है कि विपक्ष में प्रधानमंत्री पद का एक और दावेदार धराशायी हो गया है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने बीमारी के बाद भी विपक्ष का संयुक्त महागठबंधन बनया था। इसमें नीतिश कुमार को भी पीएम का दावेदार माना जा रहा था। लेकिन नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने राजनीति के मैदान पर जो जाजम बिछाई, उसमें नीतिश कुमार स्वयं ही एनडीए की शरण में आ गए। एनडीए में शामिल होने वाले दल का कोई भी नेता सपने में भी पीएम की उम्मीदवारी नहीं कर सकता है। नीतिश कुमार ने जिस तरह से विपक्ष का साथ छोड़ कर नरेन्द्र मोदी की शरण ली है, उससे लालूप्रसाद यादव जैसे बड़बोले नेता अपनी मौत मारे गए हैं। विपक्ष के महागठबंधन में अब कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही पीएम उम्मीदवार नजर आ रही हैं। हालांकि लोकसभा के चुनाव दो वर्ष बाद होंगे। देखना है कि इन दो वर्षों में विपक्ष के महागठबंधन का क्या होता है। बिहार में जो कुछ भी घटनाक्रम हुआ उस पर राहुल गांधी का कहना है कि उन्हें तो चार माह पहले ही पता था कि नीतिश कुमार क्या करने जा रहे हैं। सवाल उठता है कि यदि राहुल गांधी को पता था तो एक राजनेता के नाते उन्होंने रोकथाम की कोशिश क्यों नहीं की? जाहिर है कि मोदी और अमित शाह की रणनीति के आगे कांग्रेस की रणनीति कमजोर रही। भाजपा सम्प्रदायिक पार्टी है, यह तर्क भी बिहार में नीतिश कुमार को उनके इरादों से डिगा नहीं सका। भले हीपूर्व में नरेन्द्र मोदी के कारण ही नीतिश कमार ने एनडीए का साथ छोड़ा हो, लेकिन आज मोदी के कारण ही नीतिश कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो गए हैं। 27 जुलाई को भाजपा का देश के 18 राज्यों में शासन हो गया है। अब देखना है कि विपक्ष भाजपा की इस ताकत से कैसे मुकाबला करता है। जबकि पूरे देश में जीएसटी की वजह से व्यापारी वर्ग भाजपा से बुरी तरह खफा है।
एस.पी.मित्तल) (27-07-17)
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