अजमेर का लोकसभा उपचुनाव तय करेगा वसुंधरा राजे का राजनीतिक भविष्य। अगले वर्ष नवम्बर में होने वाले हैं विधानसभा के चुनाव। ======

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अजमेर में होने वाले लोकसभा के उपचुनाव के परिणाम राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। मालूम हो कि भाजपा सांसद सांवरलाल जाट के निधन की वजह से अजमेर में उपचुनाव होने हैं। उम्मीद है कि आगामी नवम्बर में गुजरात विधानसभा के साथ ही अजमेर के उपचुनाव भी करवा दिए जाए। वैसे तो राजस्थान में भी अगले वर्ष नवम्बर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लेकिन सांसद जाट के निधन की वजह से प्रदेश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को फाइनल से पहले सेमीफाइनल मैच अजमेर में खेलना पड़ेगा। कांग्रेस के पास तो गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है। क्योंकि गत चुनावों मे ंकांग्रेस प्रदश्ेा की सभी 25 सीटें हार चुकी हैं। लेकिन भाजपा तो चुनावी सफलता के शीर्ष पर बैठी हुई है। सीएम वसुंधरा राजे को लेकर कई बार नाराजगी सामने आई है। अभी हाल ही में आनंदपाल प्रकरण को लेकर राजपूत समाज में नाराजगी है। आरोप है कि अभी भी हजारों राजपूत युवक जेलों में बंद हैं। राज्य कर्मचारी पिछले कई दिनों से सामूहिक अवकाश पर हैं तो अजमेर में विद्युत वितरण निगम के 200 तकनीकी कर्मचारी अपने परिजनों के साथ सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। निगम के एमडी मेहराम विश्नाई ने 200 कर्मचारी के तबादले अजमेर जिले से बाहर कर दिए है। इस मामले में गंभीर बात तो यह है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े श्रमिक संघ की भी सरकार परवाह नहीं कर रही है। अजमेर में आठ में से सात भाजपा के विधायक हैं। इनमें से 4 मंत्री स्तर की सुविधाएं ले रहे हैं। लेकिन अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के विधायकों के प्रति नाराजगी है। हालांकि कोई एक चुनाव किसी मुख्यमंत्री का राजनीतिक भविष्य तय नहीं करता है, लेकिन राजस्थान में अगले वर्ष ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसलिए सीएम राजे के लिए अजमेर का उपचुनाव बहुत मायने रखता है। यदि इस चुनाव में भाजपा की हार होती है तो इसका सीधा असर विधनसभा के चुनाव पर पड़ेगा। ऐसे में सीएम राजे को लेकर भाजपा हाईकमान कोई बड़ा फैसला ले सकता है। कांग्रेस इस उपचुनाव को लेकर बहुत गंभीर है। कांग्रेस का प्रयास है किसी सरकार और भाजपा विधायकों के प्रति जो नाराजगी है। उसे उपचुनाव में भुनाया जाए। राजपूत समाज ने तो अभी से ही अजमेर में हलचल शुरू कर दी है। अजमेर संसदीय क्षेत्र में कोई 2 लाख राजपूत मतदाता हैं। आंनदपाल प्रकरण के समय आंदोलन में अजमेर प्रमुख केन्द्र रहा। जिन भाजपा विधायकों ने आंदेालन के दौरान सरकार की तरफदारी की उन्हें अब अपने विधानसभा क्षेत्रों में राजपूत मतदाताओं का भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा।
एस.पी.मित्तल) (17-08-17)
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