मुस्लिम संगठनों में भी नए विचारों वाले युवा आगे आएं। जिनका मकसद मंत्री, सांसद, विधायक आदि बनना न हो।

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22 अगस्त को एक साथ तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया, उस पर कांगे्रस के प्रवक्ता एडवोकेट जयवीर शेरगिल ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण और सार्थक प्रतिक्रिया दी है। शेरगिल ने कहा कि कांग्रेस तो पहले से ही एक साथ तीन तलाक के खिलाफ है। इसलिए पीडि़त मुस्लिम औरतों की ओर से कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता और वकील सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की। इस फैसले से उन्हें धक्का लगा है, जिन्होंने धंधा बना लिया था। हालांकि कांग्रेस के दूसरे प्रवक्ताओं ने वोट की राजनीति के नजरिए से भी प्रतिक्रिया दी। लेकिन अब समय आ गया है, जब देशभर के मुस्लिम संगठनों को अपने आंतरिक ढांचे में बदलाव करना चाहिए। आज ऐसे अनेक संगठन हैं जिन पर पिता के बाद पुत्र ही गद्दीनशीन हुआ है। जब हम पूरी कौम के प्रतिनिधित्व करने की बात करते हैं, तो क्या कौम के दूसरे व्यक्तियों को पदाधिकारी बनने का हक नहीं है?अच्छा हो कि मुस्लिम संगठनों के पदाधिकारियों के चयन में लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया जाए। यदि नए विचारों वाले मुस्लिम युवा पदाधिकारी बनेंगे तो फिर संगठन को भी नई ऊंचाई मिलेगी। चाहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो या अन्य कोई मुस्लिम संगठन। आमतौर पर यह देखा गया है कि पीढ़ी दर पीढ़ी काबिज रहने वाला का मकसद मंत्री, सांसद और विधायक बनना रहता है। चूंकि राजनीतिक दलों को वोट की खातिर ऐसे संगठनों की जरुरत होती है। इसलिए इन्हीं पदाधिकारियों को लाभ के पद दे दिए जाते हैं। सरकारी पद लेने के बाद ऐसे पदाधिकारियों का झुकाव अपने आप संबंधित राजनीतिक दल की ओर हो जाता है। जबकि पदाधिकारियों का मकसद पूरी कौम को लाभ पहुंचना होना चाहिए। कौम की नुमाइंदगी करते हुए अनेक लोग को मालामाल हो गए, जबकि आम आदमी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है। यहां तक की उस गरीब को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ तक नहीं मिल रहा।
एस.पी.मित्तल) (22-08-17)
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