तो क्या मुफ्त में होगा राजमार्गों का उपयोग? जब जनता टोल चुकाएगी तो फिर वाह-वाही किस बात की।
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29 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उदयपुर में आयोजित एक भव्य समारोह में 5 हजार 610 करोड़ की लागत से तैयार हुए राजस्थान के 12 राष्ट्रीय राजमार्गों का लोकार्पण किया। साथ ही 9 हजार 490 करोड़ की लागत से तैयार होने वाले 11 राष्ट्रीय राजमार्गों का भूमि पूजन भी किया। चूंकि राजस्थान में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसलिए समारोह में केन्द्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने इन विकास कार्यों का श्रेय लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पीएम मोदी ने भी पर्यटन बढ़ाने की बात कहते हुए राजस्थान वासियों को रोजगार मिलने के लिए बधाई दी। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी देश और प्रदेश के विकास में सड़कों का विशेष महत्व होता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या कोई सरकार इन सड़कों पर मुफ्त में परिवहन की इजाजत देती है? हम सब देखते हैं कि सड़कों का निर्माण बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा अपने खर्च पर किया जाता है और फिर टोल बूथ लगाकर आम जनता से वसूली की जाती है। सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की दोनों में ही ऐसी नीतियां बनाई जाती है कि सड़क की लागत वसूल लेने के बाद भी संबंधित कंपनियां टोल बूथ लगाकर वसूली करती रहती हैं। जो केन्द्रीय सड़क मंत्रालय एक रुपए भी नहीं लगाता वह मंत्रालय टोल वसूलने वाली कंपनी से 40 प्रतिशत तक का हिस्सा लेता है। अब तो इतने हालात खराब हो गए हैं कि शहरी क्षेत्र की सड़कों को भी राष्ट्रीय राजमार्ग बना दिया गया है और उस पर जबरन टोल वसूली की जाती है। पीएम नरेन्द्र मोदी ने 29 अगस्त को राजस्थान में जिन 12 राष्ट्रीय राजमार्गों का लोकार्पण किया उनमें पहले से ही टोल वसूली हो रही है। यानि सड़क निर्माण आमजनता के पैसांे से किया जाता है। सवाल उठता है कि जब जनता शुल्क दे रही है तो फिर कोई सरकार वाह-वाही कैसे ले सकती है? बल्कि देखा जाए तो आज देश में टोल वसूली का बहुत बड़ा कारोबार हो गया है और इस कारोबार में राजनेता भी शामिल हैं। यह सवाल भी बार-बार उठा है कि जब मोटर वाहन खरीदने के समय सरकार रोड टैक्स वसूलती है तो फिर टोल टैक्स क्यों वसूला जाता है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को टोल वसूली की नीति की समीक्षा करनी चाहिए। जिन मार्गों के निर्माण की लागत जनता से वसूल ली गई है उस पर तो कम से कम टोल बूथ हटा लेने चाहिए। या फिर टोल की राशि कम की जानी चाहिए। जो लोग राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का श्रेय लेते हैं उन्हें यह भी बताना चाहिए कि हर साल टोल का शुल्क क्यों बढ़ जाता है? जब प्रतिवर्ष वसूली की जा रही है तो लागत की कुछ तो भरपाई हो ही रही होगी। लेकिन इसे टोल का भ्रष्टाचार ही कहा जाएगा कि संबंधित कंपनी हर साल टोल का शल्क बढ़ा देती है। किशनगढ़ और जयपुर के बीच जो हाईवे बनाया गया उस पर 45 रुपए से शुरुआत हुई थी, आज 100 रुपए वसूले जा रहे हैं। किसी भी सरकार में यह बताने वाला कोई नहीं है कि हर साल टोल के शुल्क में वृद्धि क्यों होती है।
एस.पी.मित्तल) (29-08-17)
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