जयपुर में जस्टिस माहेश्वरी ने राजस्थान पुलिस को लगाई लताड़ तो जोधपुर में जस्टिस लोढ़ा ने काले कानून पर सरकार की आपत्ति को खारिज किया।

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जयपुर में जस्टिस माहेश्वरी ने राजस्थान पुलिस को लगाई लताड़ तो जोधपुर में जस्टिस लोढ़ा ने काले कानून पर सरकार की आपत्ति को खारिज किया।
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24 नवम्बर को राजस्थान हाईकोर्ट में सरकार और पुलिस के लिए सकंट का दिन रहा। हाईकोर्ट की जयपुर खंडपीठ के जस्टिस महेन्द्र माहेश्वरी ने सिरसा स्थित रामरहीम के डेरे से जयपुर की एक महिला के गायब हो जाने के मामले में राजस्थान पुलिस को जमकर लताड़ लगाई। जस्टिस माहेश्वरी ने यहां तक कहा कि क्या अब पुलिस को जांच करने का काम भी सिखाना पड़ेगा? कोर्ट ने इस बात पर अफसोस जताया कि सिरसा स्थित रामरहीम के डेेरे से महिला के गायब होने पर राजस्थान पुलिस ने गंभीरता के साथ जांच नहीं की है। जब पुलिस के पास महिला के पति का बयान और सबूत हैं कि महिला डेरे में ही गई थी और उसके बाद आज तक भी नहीं लौटी है। ऐसे में पुलिस को डेरे के अधिकारियों से सम्पर्क कर लापता महिला का पता लगाना चाहिए। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि यदि पुलिस ने सही तरीके से काम नहीं किया तो संबंधित अधिकारी को नौकरी से भी हटाया जा सकता है। इस मामले में आगामी सात दिसम्बर को फिर सुनवाई होगी। जस्टिस माहेश्वरी का कहना रहा कि अगली सुनवाई पर पुलिस विस्तृत जांच पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें नहीं तो कोर्ट को सख्त निर्णय देना पड़ेगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि जयपुर के कमलेश नामक व्यक्ति ने जवाहर नगर पुलिस स्टेशन पर उसकी पत्नी के गायब होने की शिकायत दी है। पति का कहना है कि वह स्वयं अपनी पत्नी को सिरसा स्थित राम रहीम के डेरे में छोड़कर आया था, लेकिन इसके बाद से उसकी पत्नी लौटी नहीं है। पति को अपनी पत्नी की हत्या की आशंका भी है।
जोधपुर में भी नाराजगीः
हाईकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ में भी 24 नवम्बर को सरकार को नाराजगी का सामना करना पड़ा। हुआ यूं कि सीआरपीसी में संशोधन के मामले में एक जनहित याचिका पर जस्टिस संगीतराज लोढ़ा सुनवाई कर रहे थे कि तभी अतिरिक्त महाधिवक्ता का कहना रहा कि इससे याचिकाकर्ता का कोई हित प्रभावित नहीं हो रहा है, इसलिए यचिका को खारिज कर दिया जाए। इस पर जस्टिस लोढ़ा ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यह जनहित का मामला है और इससे पूरा प्रदेश प्रभावित है। सरकार की ओर से इस तरह की आपत्तियां शोभा नहीं देती हैं। इसी दौरान याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट नीलकमल बोहरा ने कहा कि सीआरपीसी में संशोधन के बिल से न्यायिक कार्य में तो हस्तक्षेप होगा ही, साथ ही प्रेस की आजादी भी खतरे में पड़ जाएगी। सरकार को इस काले कानून को रद्द किया जाना चाहिए। अब इस मामले में 28 नवम्बर को सुनवाई होगी।
एस.पी.मित्तल) (24-11-17)
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