तो इस बार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा राजे के दबाव में नहीं आएगा।

तो इस बार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा राजे के दबाव में नहीं आएगा। अब यह राजे के समझने की जरुरत है। दिल्ली में भी हो सकती है भाजपा विधायक दल की बैठक।
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अब यह समझना चाहिए कि दिल्ली में बैठा भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके दबाव में नहीं आएगा। यदि दबाव में होता तो गत 26 अप्रैल को तीन घंटे की मुलाकात में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का मामला निपटा देेते। यानि वसुंधरा राजे जिस नेता को चाहती थीं उसे अध्यक्ष घोषित कर दिया जाता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमितशाह का शीर्ष नेतृत्व भी समझ रहा है कि प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा नहीं होने से राजस्थान में भाजपा को राजनीतिक दृष्टि से नुकसान हो रहा है। कुछ जानकारों का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व कर्नाटक के चुनाव में व्यस्त है, इसलिए प्रदेशाध्यक्ष का मामला टाल दिया है, लेकिन जो जानकार मोदी-शाह की कार्यशैली से वाकिफ है, उनका मानना है कि राजनीति के पिच पर वसुंधरा राजे को दौड़ने का मौका दिया जा रहा है, ताकि दमखम को देखा और समझा जा सके। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के पद से अशोक परनामी से 16 अप्रैल को इस्तीफा लेने के बाद राजे की हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। नेतृत्व को यह भी पता है कि वसुंधरा राजे ने अब सार्वजनिक सभाओं में केन्द्र सरकार की योजनाओं का उल्लेख करना छोड़ दिया है तथा विकास कार्यों का स्वयं ही श्रेय ले रही हैं। मुख्य सचिव के एक्सटेंशन का मामला हो या आईएएस कैडर में वृद्धि के प्रस्ताव का। सभी में वसुंधरा राजे को सबक सीखाने की जरुरत है। यह माना कि पूर्व में राजे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को झुकाती रही हैं, लेकिन इस बार मामला उल्टा है। वैसे तो अशोक परनामी से इस्तीफा लेने के बाद ही वसुंधरा राजे को समझ लेना चाहिए था, लेकिन वसुंधरा राजे को अब भी लगता है कि भाजपा नेतृत्व झुकेगा। शायद इस बार राजे राजनीतिक स्थितियों का गलत आंकलन कर रही हैं। राजे माने या नहीं प्रदेश भर में उन्हें लेकर भारी नाराजगी है। यदि नवम्बर में होने वाले चुनाव में राजे के फेस को आगे रखा गया तो भाजपा की स्थिति और खराब होगी। हाल के उपचुनाव में सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में मिली हार से राजे को कुछ तो सबक लेना ही चाहिए। यदि राजे को यह लगता है कि उपचुनाव की हार का असर विधानसभा चुनाव पर नहीं पड़ेगा तो यह उनकी बड़ी भूल होगी। चुनाव की राजनीति समझने वालों का कहना है कि यदि राजे की जगह नरेन्द्र मोदी का चेहरा ही सामने रख कर विधानसभा का चुनाव लड़ा जाता है तो उपचुनाव की हार का असर कम होगा। यदि विजय राजे सिंधिया द्वारा खड़ी की गई पार्टी से वसुंधरा राजे को वाकई प्यार है तो शीर्ष नेतृत्व का कहना मानना चाहिए। जो लोग वसुंधरा राजे के नेतृत्व में राजस्थान में तीसरे मोर्चे के सपने देख रहे हैं वे मुंगेरीलाल ही साबित होंगे।
दिल्ली में हो सकती है भाजपा विधायक दल की बैठकः
वसुंधरा राजे की रणनीति को देखते हुए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश के भाजपा विधायकों की बैठक दिल्ली में बुला सकता है। जब वसुंधरा राजे अपने हिमायती मंत्रियों और विधायकों को दिल्ली भेज सकती हैं तो फिर विधायक दल की बैठक दिल्ली में क्यों नहीं हो सकती? आने वाले दिनों में राजस्थान की भाजपा की राजनीति में बड़ा बदलाव होगा, जिसकी केन्द्र स्वयं राजे होंगी।
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