तो क्या अब सीएम वसुंधरा राजे की जयपुर में रहने में रुचि नहीं। दो माह बाद भी नहीं सुलझा प्रदेशाध्यक्ष का विवाद।
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वसुंधरा राजे राजस्थान के मुख्यमंत्री पद का कार्य कैसे करें, यह उनका विशेषाधिकार हैं, लेकिन माना यह भी जाता है कि प्रदेश की राजधानी में बैठ कर प्रभावी भूमिका निभाई जाती है। हालांकि जनहित में दौरे भी जरूरी है, लेकिन बड़े निर्णयों के लिए राजधानी आना ही पड़ता है। पिछले एक माह का अध्ययन किया जाए तो सीएम राजे मुश्किल से पांच सात दिन ही जयपुर में रही हैं। सीएम का अधिकांश समय जिला स्तर के दौरों में गुजर रहा है। 18 जून से राजे चार दिवसीय झालावाड़ दौरे पर है। सीएम दिल्ली से चार्टर प्लेन से झालावाड़ पहुंची थी। इससे पहले चार दिनों तक सीएम दिल्ली में रही। दिल्ली जाने से पहले भी सीएम ने सवाई माधोपुर जिले का दौरा किया था। इससे पहले चित्तौड़ के दौरे पर रही। सीएम जयपुर के बजाए धौलपुर के राज निवास में ज्यादा रह रही हैं। जून माह में ही सीएम कोई छह दिन धौलपुर महल में रही है। जानकारी के मुताबिक 21 जून को सीएम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर कोटा में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में भाग लेगी और फिर उनका जोधपुर जाने का कार्यक्रम है। कहा तो यही जा रहा है कि नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सीएम राजे जिला स्तर पर जनसंवाद कर रही है। हालांकि ऐसा जनसंवाद लोकसभा उपचुनाव के दौरान अजमेर और अलवर में भी किया गया, लेकिन इस दोनों संसदीय क्षेत्रों के सभी 16 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। अब जिला स्तर के जनसंवाद कितने सफल होंगे इसका पता नवम्बर में होने वाले चुनावों में चलेगा।
प्रदेशाध्यक्ष का पद खालीः
इसे भाजपा के लिए असमंजस की स्थिति ही कहा जाएगा कि प्रदेश अध्यक्ष का पद दो माह से भी अधिक समय से खाली पड़ा है। नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर सीएम राजे की दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात हो चुकी है, लेकिन घोषणा नहीं हो पाई। सीएम अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलना चाहती है, लेकिन मोदी की व्यस्तता की वजह से मुलाकात नहीं हो पा रही है। भाजपा के नेता भी मानते है कि अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने से संगठन को नुकसान हो रहा है। सीएम की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अध्यक्ष उन्हीं की मर्जी का होगा। सब जानते हैं कि चुनाव में पार्टी के सिंबल पर प्रदेशाध्यक्ष के ही हस्ताक्षर होते हैं। सीएम राजे अशोक परनामी जैसा अध्यक्ष चाहती है। जो उनके कहे अनुसार हस्ताक्षर करे। वहीं राष्ट्रीय नेतृत्व किसी विवेकशील नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहता है।