अशोक गहलोत अब कांग्रेस में कौन से हाई कमान की बात कर रहे हैं? सीएम चेहरे के सवाल पर फिर कहा राजस्थान मेरे दिल में। ============

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अशोक गहलोत अब कांग्रेस में कौन से हाई कमान की बात कर रहे हैं? सीएम
चेहरे के सवाल पर फिर कहा राजस्थान मेरे दिल में।
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27 जून को जयपुर में अपने सरकारी आवास पर कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन
महासचिव अशोक गहलोत ने एक संवाददाता सम्मेलन रखा। राजस्थान में विधानसभा
चुनाव में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के चेहरे के सवाल पर गहलोत
ने कहा कि मैं कितनी बार कह चुका हंू कि मैं राजस्थान से दूर नहीं हंू।
जिस प्रदेश की जनता ने मुझे दो बार मुख्यमंत्री बनाया उससे मैं कैसे दूर
रह सकता हंू, लेकिन कांग्रेस में मुख्यमंत्री बनाने अथवा चुनाव में चेहरा
घोषित करने का काम हाईकमान का है। सवाल उठता है कि आखिर गहलोत कांग्रेस
में कौन से हाई कमान की बात कर रहे हैं? आज जो राजनीतिक हालात है उसमें
कांग्रेस में श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बाद अशोक गहलोत का
ही नम्बर आता है। देश के किसी भी प्रदेश में कांग्रेस संगठन में नियुक्ति
संगठन महासचिव के नाते अशोक गहलोत के हस्ताक्षर से ही होती है। चाहे
गुजरात का चुनाव हो या फिर कर्नाटक में भाजपा की सरकार नहीं बनने देने
में गहलोत की सक्रिय भूमिका रही है। गहलोत को अब राजस्थान में भी
कांग्रेस का राज आते नजर आ रहा है। इसलिए बार बार अपने कथन को दोहरा रहे
हैं। गहलोत इसलिए ऐसा कह रहे हैं कि वे स्वयं हाईकमान हैं। यदि गहलोत
कांग्रेस के हाईकमान नहीं होते तो प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के सामने ऐसा
बयान देने की हिम्मत नहीं करते। अशोक गहलोत को भी पता है कि सचिन पायलट
की एप्रोच सीधे राहुल गांधी के पास है और पिछले चार वर्ष से पायलट भी
राजस्थान में कांग्रेस को खड़ा करने में लगे हुए हैं। पायलट ने कई मौकों
पर कहा भी है कि 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की स्थिति बेहद
कमजोर थी। 200 में से मात्र 21 विधायक ही कांग्रेस के थे। जबकि भाजपा को
163 विधायकों का प्रचंड बहुमत मिला था। सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस की
ओर से कौन मुख्यमंत्री बनेगा? अहम सवाल यह है कि आज गहलोत जो राजस्थान से
दूर नहीं होने की बात यह कर स्वयं को सीएम पद का चेहरा दिखाने का प्रयास
कर रहे हैं, उसके पीछे सचिन पायलट की भी मेहनत है। पायलट ने यह मेहनत
इसलिए की ताकि बहुमत मिलने पर सीएम बन सकें। यदि सीएम पद पर दावेदारी
नहीं होती तो पायलट इतनी मेहनत भी नहीं करते। ऐसा नहीं कि मरी हुई
कांग्रेस में जान डाल कर पायलट ने परिणाम नहीं दिए। 2013 के बाद स्थानीय
निकायों और पंचायती राज के चुनावों में कांग्रेस की स्थिति बराबर की रही
तथा हाल के लोकसभा के दो उपचुनावों में तो विधानसभा की सभी 17 सीटों पर
वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। यह
उपलब्धि भी पालयट के खाते में ही जाती है। या तो हाईकमान की हैसियत से
गहलोत को लगता है कि पायलट का चेहरा आगे कर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं
मिलेगा। इसलिए हर मौके पर स्वयं का चेहरा भी आगे कर देते हैं। इसमें कोई
दो राय नहीं कि आज भी गहलोत की लोकप्रियता राजस्थान में बनी हुई है।
एस.पी.मित्तल) (27-06-18)
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