नए प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल राजस्थान भाजपा को सीएम वसुंधरा राजे के प्रभाव से अलग रख पाएंगे? राष्ट्रीय नेतृत्व की मंशा पर खरा उतरना भी चुनौती। ओम माथुर का बढ़ेगा दखल। व्यक्ति और संगठन के लिए काम नहीं करता-सैनी।
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30 जून को राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी ने जयपुर में राजस्थान प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का पद संभाल लिया है। इसके साथ केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बनाने की कहानी भी खत्म हो गई। इसका क्या असर होगा इसका पता नवम्बर में होने वाले विधानसभ चुनाव के परिणाम से चलेगा। अब अहम सवाल यह है कि क्या मदनलाल सैनी भाजपा संगठन को सीएम वसुंधरा राजे के प्रभाव से अलग रख पाएंगे? यह सवाल इसलिए उठा है कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने लोकसभा के उपचुनाव के परिणाम के बाद अशोक परनामी को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटा दिया था। परनामी के कार्यकाल में भाजपा संगठन पूरी तरह सीएम के प्रभाव में रहा। परनामी की सबसे बड़ी उपलब्धि ही यही है कि उन्होंने वसुंधरा राजे के इशारे पर ही कार्य किया। कहा जा सकता है कि परनामी तो नाम मात्र के अध्यक्ष रहे। असली अध्यक्ष तो सीएम राजे स्वयं थीं। नवम्बर में होने वाले विधानसभा और अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव से पहले भाजपा संगठन को सीएम के असर से दूर करने के लिए परनामी को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटाया, लेकिन सीएम ने भी हाईकान के चेहते गजेन्द्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष नहीं बनने दिया। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर के फार्मूले पर सैनी को अध्यक्ष बनाया गया। सैनी प्रदेश की भाजपा की राजनीति में कोई सफल नेता नहीं रहे हैं। इसे सैनी की तकदीर ही कहा जाएगा कि चार माह पहले राजनीति के कबाड़ में पडे़ सैनी राज्यसभा के सदस्य बने और अब 74 वर्ष की उम्र में प्रदेशाध्यक्ष जैसे पद पर विराजमान हो गए हैं। जहां तक खेमे बाजी का सवाल है तो राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे के अलावा कोई खेमा है ही नहीं। ओम माथुर जैसे नेता प्रदेश छोड़ कर चले गए तो घनश्याम तिवाड़ी जैसे तो पार्टी से बाहर ही हो गए। पीएम नरेन्द्र मोदी और अमितशाह के चेहते माने जाने वाले राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव किसी तरह स्वयं को विवादों से बचाएं हुए हैं। वसुंधरा राजे के समर्थक यह तो दावा कर सकते हैं कि शेखावत को अध्यक्ष नहीं बनने दिया, लेकिन यह दावा नहीं कर सकते कि सैनी भी परनामी की तरह काम करेंगे। सैनी भी समझते हैं कि सीएम राजे ने प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनवाया है। वे तो अपनी तकदीर से अध्यक्ष बने हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों का फैसला अकेले वसुंधरा राजे नहीं करंेगी। जहां तक चुनाव में नेतृत्व का सवाल है तो फिलहाल तो वसुंधरा राजे का ही रहेगा। सैनी के अध्यक्ष बनने से भाजपा में अब ओम माथुर का दखल बढ़ जाएगा। प्रदेशाध्यक्ष के मामले में सीएम राजे को भी दो कदम पीछे हटना पड़ा है। अब देखना है कि चार वर्ष तक इशारे पर काम करने वाले अशोक परनामी को किस तरह उपकृत किया जाता है। उम्मीद है कि कुछ दिनों में परनामी को लाभ का प्रभावी पद मिलने वाला है।
व्यक्ति और संगठन के लिए नहींः
30 जून को पदभार संभालने पर भाजपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए नवनियुक्त अध्यक्ष मदनलाल सैनी ने कहा कि मैं किसी व्यक्ति अथवा संगठन के लिए काम नहीं करता हंू। मैं उस विचार के लिए काम करता हंू जो देश के हित में है। एक विचार को लेकर ही भाजपा इस मुकाम तक पहुंची है। सैनी ने कहा कि कार्यकर्ता की बदौलत ही वे आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा जीत दिलवाएंगे।