राजस्थान में 95 लाख भाजपा कार्यकर्ता हैं तो फिर प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए कलेक्टरों की मदद क्यों ली जा रही है 7 जुलाई को जयुपर में है मोदी की सभा।
======
30 जून को जयपुर में जब मदनलाल सैनी ने राजस्थान प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष पद संभाला तो निवर्तमान अध्यक्ष अशोक परनामी ने गर्व के साथ कहा कि आज राजस्थान में 95 लाख भाजपा कार्यकर्ताओं का भरापूरा परिवार है। परनामी ने जब ये बात कही तब समारोह में उपस्थित मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ताली बजा कर स्वागत किया। परनामी और सीएम के भाषण के बाद सैनी ने अपने संबोधन में कहा कि मंै इन्हीं 95 लाख कार्यकर्ताओं की बदौलत ही विधानसभा और लोकसभा में भाजपा की जीत दर्ज करवाऊंगा। सवाल उठता है कि जब भाजपा के पास प्रदेश में 95 लाख रजिस्टर्ड कार्यकर्ता हैं तो फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित 7 जुलाई की सभा में भीड़ एकत्रित करने के लिए कलेक्टरों को जिम्मेदारी क्यों दी गई हैघ् मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एक बैठक कर निर्देश दिए कि हर जिले में जिला कलेक्टर कोई दस हजार ऐसे व्यक्तियों को चिह्नित करेंगेए जिन्होंने केन्द्र और राज्य की योजनाओं में लाभ प्राप्त किया है। कलेक्टरों की यह भी जिम्मेदारी होगी कि ऐसे लाभार्थियों को 7 जुलाई को जयपुर में होने वाली प्रधानमंत्री की सभा में उपस्थित रखा जाए यानि ऐसे लाभार्थियों को लाने ले जाने का खर्चा भी सरकार वहन करेगी। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी लाभार्थियों से सीधा संवाद करेंगे। कलेक्टरों को जो लक्ष्य दिया गया है उसके अनुरूप प्रधानमंत्री की सभा में कोई तीन लाख लोग उपस्थित हो जाएंगे यानि जो काम पहले भाजपा के विधायक और जिलाध्यक्ष करते हैं वो काम अब कलेक्टर को करना होगा। चूंकि ये निर्देश मुख्यमंत्री की ओर से दिए गए हैं इसलिए प्रत्येक कलेक्टर को निर्देश मानने ही पड़ेंगे। केन्द्र और राज्य में भाजपा सरकार है इसलिए किसी भी कलेक्टर की हिम्मत नहीं की वह प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने से इंकार कर देए लेकिन ये सवाल अपनी जगह खड़ा है कि जब 95 लाख कार्यकर्ता हैं तो फिर कलेक्टरों की मदद क्यों ली जा रही है। क्या सीएम वसुंधरा राजे प्रदेश अध्यक्ष मदनलाल सैनी और पूर्व अध्यक्ष अशोक परनामी 5 प्रतिशत कार्यकर्ता भी प्रधानमंत्री की सभा में एकत्रित नहीं कर सकतेघ् जाहिर है कि परनामी ने अपनी सफलता दिखाने के लिए 95 लाख कार्यकर्ताओं का दावा तो कर दियाए लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। यानि वाकई 95 लाख कार्यकर्ता होते तो प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए कलेक्टरों की मदद नहीं लेनी पड़ती। भाजपा को 5 माह बाद ही विधानसभा के चुनाव का सामना करना पड़ेगा। अच्छा हो कि भाजपा की कथनी और करनी में फर्क न हो।