बहुत फर्क है अशोक परनामी और नए भाजपा अध्यक्ष मदनलाल सैनी में। अब सुनने को नहीं मिलेगा आदरणीय और यशस्वी मुख्यमंत्री।
2 जुलाई को अजमेर दौरे और राजस्थान के न्यूज चैनल फर्स्ट इंडिया को दिए एक्सक्ल्यूसिव इंटरव्यू को देखने से प्रतीत होता है कि राजस्थान भाजपा के नए प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी और पूर्व अध्यक्ष अशोक परनामी में बहुत फर्क है। जहां पहले सीएम वसुंधरा राजे के बिना भाजपा संगठन की बैठक संभव नहीं थी, वहां अब न केवल बैठकें हो रही हैं, बल्कि महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए जा रहे हैं। भाजपा के सभी नेता जानते हैं कि बैठकों में परनामी सबसे पहले आदरणीय और यशस्वी मुख्यमंत्री जी का ही संबोधन करते थे। अब मदनलाल सैनी की जुबान से ऐसे शब्द शायद ही सुनने को मिले। हालांकि परनामी और सैनी की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं है, लेकिन सैनी जानते हैं कि वे किसी नेता की मेहरबानी से प्रदेशाध्यक्ष नहीं बने हैं, बल्कि राजनीतिक हालातों में मजबूरी में प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है। मेरे अध्यक्ष बनने की खबर से कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के माथे पर पसीने आ गए, सैनी का यह कथन अतिउत्साह वाला ही है। सैनी भी जानते हैं कि चार माह पहले राज्यसभा का सदस्य बनने से पहले तक वे राजनीतिक के कबाड़ में पड़े थे। सैनी तो आरपीएससीस अथवा किसी बोर्ड का सदस्य तक बनने को तैयार थे। सैनी ने स्वयं स्वीकार किया है कि सीएम वसुंधरा राजे से उनका ज्यादा संबंध नहीं रहा, क्योंकि राजनीति में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर ने आगे बढ़ाया। वसुंधरा राजे के राज में ओम माथुर के समर्थकों की कैसी दुर्गति हुई है यह किसी से छिपा नहीं है। अशोक परनामी की गाड़ी आदरणीय और यशस्वी शब्दों से आगे नहीं बढ़ी तो वहीं सैनी का कहना है कि प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा के समय उनकी मुलाकात राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह से हुई। अमितशाह ने कहा कि आपकी (सैनी) छवि बहुत सख्त है। लेकिन अब आप प्रदेशाध्यक्ष हैं तो आपको लिबरल होना पड़ेगा। मुख्यमंत्री से भी तालमेल बैठाना होगा, तो पाार्टी के पदाधिकारियों से भी। इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठ भूमि वाले सैनी एक ईमानदारी और निष्ठावान कार्यकर्ता हैं, लेकिन राजनीति में वे सीधी और सपाट बात करते हैं। यह सीधी और सपाट बात कब तक चलेगी। यह आने वाला समय ही बताएगा। मैंने पहले भी लिखा था कि सीएम राजे सिर्फ गजेन्द्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनने से रोक पाई हैं। सैनी की नियुक्ति ओम माथुर के फार्मूले से हुई है। इसमें ओम माथुर को सीएम राजे को भी समझना पड़ा है। प्रदेशाध्यक्ष के विवाद में ओम माथुर राजस्थान की राजनीति में ताकतवर बन कर उभरे हैं। इससे ओम माथुर के समर्थकों में खुशी की लहर है, वहीं अब वसुंधरा राजे के समर्थक भी मदनलाल सैनी के आसपास मंडराने लगे हैं।