प्रधानमंत्री की लाभार्थी सभा से क्या राजस्थान में वसुंधरा विरोधी माहौल ठीक हो पाएगा? सवाल मंत्रियों, विधायकों और भाजपा नेताओं के घमंड का भी है।

प्रधानमंत्री की लाभार्थी सभा से क्या राजस्थान में वसुंधरा विरोधी माहौल ठीक हो पाएगा? सवाल मंत्रियों, विधायकों और भाजपा नेताओं के घमंड का भी है।


7 जुलाई को जयपुर में अमरूदों के बाग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बड़ी जनसभा भी हो गई। इस सभा में सरकारी खर्चे पर दो लाख से भी ज्यादा लोग एकत्रित किए गए। दावा है कि इस सभा में मौजूद व्यक्तियों को किसी न किसी सरकारी योजना में लाभ मिला है। चुनिंदा लाभार्थियों से प्रधानमंत्री ने संवाद भी किया। लाभार्थी सभा करवाने के पीछे विपक्ष को भी यह दिखाना था कि योजनाओं का लाभ निचले स्तर तक पहुंचा है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जयपुर की सभा सफल रही है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस सभा से राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे विरोधी माहौल ठीक हो पाएगा? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मात्र चार माह बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। असल में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह को राजस्थान की हकीकत पता है, इसलिए प्रधानमंत्री की सभा में भीड़ जुटाने के लिए सरकारी मशीनरी का खुला उपयोग किया। यानि भीड़ जुटाने में भाजपा संगठन की कोई भूमिका नहीं रही। संभवतः यह पहला मौका रहा जब प्रधानमंत्री की सभा में इस तरह से लोगों को लाया गया। अब देखना होगा कि इस सभा से प्रदेश में वसुंधरा विरोधी माहौल कितना ठीक होता है। वैसे माहौल ठीक होने की संभावना कम ही है, क्योंकि मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और भाजपा नेताओं का घमंड कम नहीं हो रहा है। सत्ता के नशे में चूर जब इन जनप्रतिनिधियों और नेताओं ने उपचुनाव में सभी 17 विधानसभा सीटों पर हार से कोई सबक नहीं लिया तो अब पीएम की सभा से क्या सबक लेंगे। यह माना कि सरकार की विभिन्न योजनाओं में लोगों को लाभ मिला है। लेकिन यह जारूरी नहीं कि ऐसे लाभार्थी वोट भी दें। लाभार्थियों ने उपचुनाव से पहले ही लाभ प्राप्त कर लिया था, लेकिन फिर भी अजमेर, अलवर और भीलवाड़ा में भाजपा उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। राजपूत और रावणा राजपूत समाज में नाराजगी बरकरार है। उल्टे भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के विवाद से इन दोनों समाजों में और नाराजगी बढ़ी है। उपचुनाव की हार के बाद भी सरकार की ओर से नाराजगी को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। असल में मुख्यमंत्री के इर्दगिर्द ऐसे लोग जमा है जो न तो हकीकत बताते हैं और न ही माहौल को ठीक करने का प्रयास करते हैं। उल्टे गलत तथ्य प्रस्तुत कर नाराजगी को और बढ़ाते हैं। यह माना कि वसुंधरा राजे का अपना मिजाज है, लेकिन आस पास जमा लोग जब सत्ता का सुख भोग रहे हैं तो फिर उनकी भी जिम्मेदारी बनती है। विरोधियों की संख्या लगातार बढ़ने से प्रतीत होता है कि आसपास जमा लोग मुख्यमंत्री के हितैषी नहीं है। अब यह मुख्यमंत्री पर निर्भर करता है कि ऐसे लोगों को कब हटाए। सीएम के आसपास सकारात्मक सोच वाले होने चाहिए। जबकि वर्तमान में नकारात्मक सोच वालों का जमावड़ा है, जो सिर्फ अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगे हुए हैं। ऐसे लोग ही माहौल को ठीक नहीं होने दे रहे, जिसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में सरकार को उठाना पडे़गा।

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