आखिर वसुंधरा सरकार बेजुबान पुलिस कर्मियों की कब सुनेगी?
पटवारी से भी कम वेतन मिलता है और वर्दी धुलाई के आज भी 113 रुपए प्रतिमाह।
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रोडवेज कर्मी हो या पटवारी, विद्युतकर्मी हो अथवा सचिवालय का स्टाफ जब कभी मांग मनवानी होती है तो हड़ताल पर चले जाते हैं। सरकार को भी हड़ताल के आगे झुकना पड़ता है। ताजा उदाहरण रोडवेज कर्मियों की हाल ही की तीन दिन की चक्का जाम हड़ताल है। लेकिन राजस्थान के पुलिस कर्मी तो अपनी मांगों के लिए जुबान भी नहीं खोल सकते हैं। पिछले दिनों मैस का बहिष्कार कर सरकार का ध्यान आकर्षित किया तो बड़े अधिकारियों ने इस कदम को भी कुचल कर रख दिया। आरपीएस और आईपीएस अफसर तो अपने वेतन और सुविधा बढ़ावा लेते हैं, लेकिन 24 घंटे ड्यूटी के लिए पाबंद पुलिस कर्मी की सुनने वाला कोई नहीं है। पुलिस के सिपाही पर कितने भी लाछंन लगे, लेकिन चोर को पकड़ने से लेकर भीड़ को नियंत्रित करने में सिपाही ही अपनी जान जोखिम में डालता है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि राजस्थान पुलिस के सिपाहियों को पटवारी से भी कम वेतन मिलता है। पटवारी के वेतन को बढ़ाने के लिए सरकार ने शैेक्षणिक योग्यता 12वीं से बढ़ाकर ग्रेज्युएशन कर दी, लेकिन सिपाही की शैक्षणिक योग्यता आज भी 10वीं पास ही है। आरएसी में तो 8वीं पास को ही सिपाही बना दिया जाता है। जब कभी वेतन बढ़ाने की मांग होती है तो दसवीं पास की योग्यता बताकर पुलिस कर्मियों को दरकिनार कर दिया जाता है। शैक्षणिक योग्यता बढ़ाने की मांग लगातार की जा रही है। लेकिन वसुंधरा सरकार में सुनने वाला कोई नहीं है। इसी का नतीजा है कि मंहगाई के इस दौर में वर्दी धुलाई के प्रतिमाह मात्र 113 रुपए तथा फील्ड ट्रेवल अलाउंस के मात्र 500 रुपए ही दिए जाते हैं। मैस अलाउंस भी दो हजार रुपए ही है। एक सिपाही की पे-ग्रेड 2400 रुपए निर्धारित है जो पटवारी से भी कम है। पूर्ववती कांग्रेस सरकार ने पुलिस कर्मियों के वेतनमानों में वृद्धि की थी, लेकिन वर्ष 2013 में भाजपा की सरकार आने के बाद वेतन में 5 हजार रुपए तक की कटौती कर दी गई। इतना ही नहीं सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें भी अक्टूबर 2017 से लागू की गई है, जबकि केन्द्र सरकार ने जनवरी 2016 से ही सातवां वेतन आयोग लागू कर दिया था। इसके अलावा भी पुलिस कर्मियांे की अनेक मांगे हैं लेकिन इन छोटी-छोटी मांगों का भी समाधान नहीं हो रहा है। पुलिस कर्मियों को इस बात का मलाल है कि राज्य सरकार के अन्य विभागों के कर्मचारी तो आंदोलन और हड़ताल कर अपनी मांगों को मनवा लेते हैं, लेकिन पुलिस कर्मी तो अपनी मांगों के लिए जुबान भी नहीं खोल सकता। पुलिस को एक अनुशासित फोर्स माना जाता है, इसलिए उन्हें आंदोलन करने का अधिकार नहीं है। इसीलिए यह सवाल उठता है कि वसुंधरा सरकार बेजुबान पुलिस कर्मियों की कब सुनेगी। सरकार माने या नहीं लेकिन सरकार के इस रवैये से प्रदेश भर के पुलिस कर्मी खफा हैं। जब कभी पुलिस कर्मी सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्री की सुरक्षा में ड्यूटी देता है तो उसके मन में गुस्सा भरा होता है।