चार माह से अजमेर में स्मार्ट सिटी के कार्यों की निगरानी और डिजाइन के लिए सलाहकार ही नहीं है। अब कोर्ट में फंस गया मामला।
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कहने को तो अजमेर से लेकर दिल्ली तक सत्ता की कड़ी से कड़ी जुड़ी हुई है, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि अजमेर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के जो करोड़ों रुपए के कार्य चल रहे हैं, उनकी निगरानी और डिजाइन आदि के लिए कोई सलाहकार फर्म ही नहीं है। प्रोजेक्ट कार्य सही समय और गुणवत्ता की दृष्टि से खरे उतरे इसलिए पूर्व में एप्टीसा फर्म को नियुक्त किया था, लेकिन गत अप्रैल माह में इस फर्म को निरस्त कर दिया। इसके साथ ही नई फर्म के लिए आवेदन मांगे गए, लेकिन प्राप्त आवेदनों पर कोई निर्णय होता, इससे पहले ही एप्टीसा हाईकोर्ट चली गई और नई फर्म की नियुक्ति पर स्टे ले लिया। यानि अप्रैल माह से ही अजमेर में स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट के कार्यों के लिए डिजाइन और निगरानी वाली कोई फर्म नहीं है। ऐसे में करोड़ों रुपए के कार्य कैसे हो रहे होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि प्रोजेक्ट में लगे इंजीनियरों का कहना है कि फिलहाल डिजाइन और निगरानी का कार्य वे स्वयं ही कर रहे हैं। सवाल उठता है कि यदि सरकारी इंजीनियर ही काम कर लेते तो निजी फर्म के प्रावधान की आवश्यकता क्यों पड़ी? सूत्रों के अनुसार एप्टीसा फर्म स्पेन की है और इस समय उदयपुर और जयपुर के स्मार्ट सिटी के कार्यों के लिए अपनी सेवाएं दे रही है। यह भी जांच का विषय है कि अजमेर में एप्टीसा का वर्क आॅडर निरस्त क्यों किया गया? अजमेर में स्मार्ट सिटी के कार्यों का पहले ही बुरा हाल है और अब महत्वपूर्ण फर्म के नहीं होने से कार्यों की प्रगति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। असल में स्मार्ट सिटी के सारे कार्य अफसरों के भरोसे छोड़ दिए गए हैं। भाजपा से जुड़े जन प्रतिनिधियों की कोई भूमिका ही नजर नहीं आती है। जबकि सभी जगह भाजपा के नेता बैठे हैं। ऐसे विवादों को निपटाने में अजमेर के मंत्री और भाजपा के नेता भूमिका क्यों नहीं निभाते।