अजमेर में बिजली के पोल पर टंगा है स्मार्ट पार्किंग का बोर्ड, जबकि रेलवे स्टेशन परिसर में बनी 10 मंजिला बिल्डिंग।

अजमेर में बिजली के पोल पर टंगा है स्मार्ट पार्किंग का बोर्ड, जबकि रेलवे स्टेशन परिसर में बनी 10 मंजिला बिल्डिंग। बहुत फर्क है रेलवे और राज्य सरकार के कार्यों में।
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अजमेर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में 1947 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसमें से 991 करोड़ रुपए केन्द्र सरकार से प्राप्त होगा, जबकि 737 करोड़ रुपए पीपीपी माॅडल और सीएसआर स्कीम से जुटाना होगा। वहीं 59 करोड़ रुपए लोन से जुटाने है। पिछले दो वर्ष में केन्द्र सरकार से प्राप्त 991 करोड़ रुपए की राशि का ही इस्तेमाल हो रहा है। अधिकांश पैसा आनासागर के किनारे ही खर्च हो रहा है। एलीवेटेड रोड के लिए 220 करोड़ रुपए की राशि राजस्थान सरकार ने निगम को स्थानांतरित की है। यानि स्मार्ट सिटी के कार्यों की नोडल एजेंसी नगर निगम तो कोई बड़ा कार्य करवाने की स्थिति में है ही नहीं। हालात इतने खराब हैं कि कई कार्य तो उपठेकेदार से करवाए जा रहे हैं। प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) और औद्योगिक व्यापारिक संस्थानों से सामाजिक सरोकार के तहत जुटाई जाने वाली 737 करोड़ रुपए की राशि वाले प्रोजेक्ट में तो एक रुपया भी नहीं जुटाया गया है। ऐसे में स्मार्ट सिटी के पूरे प्रोजेक्ट पर ही सवालिया निशान लग रहा है। क्या स्थानीय निकाय की संस्थाओं में इतना दम नहीं है कि लोगों की भागीदारी शामिल की जाए? केन्द्र सरकार का जो पैसा आसानी से मिल रहा है उसे अपने नजरिए से खपाया जा रहा है। स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में लोगों की भागीदारी को जरूरी माना गया है। पीपीपी माॅडल और सीएसआर स्कीम को लेकर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में फिलहाल कोई उपलब्धी नहीं है। वहीं रेल प्रशासन ने राज्य सरकार की स्मार्ट सिटी योजना का फायदा उठाते हुए रेलवे स्टेशन परिसर में गांधी भवन चैराहे के निकट दस मंजिला बिल्डिंग खड़ी करवा दी है। सरकार के इंजीनियरों और अधिकारियों को रेलवे के इस प्रोजेक्ट से सीख लेनी चाहिए। पीपीपी माॅडल के तहत ही रेलवे ने अपनी मात्र 900 वर्गगज भूमि पर एक कंपनी को ही 45 वर्ष की लीज पर दी है। इस भूमि के अनुबंध के साथ ही कंपनी ने रेलवे को 8 करोड़ रुपए का चेक दो वर्ष पहले दे दिया। अब सालाना 40 लाख रुपए की राशि कंपनी के द्वारा रेलवे को दी जाएगी। कंपनी ने जो दस मंजिला बिल्डिंग बनाई है, उसमें ग्राउंड फ्लोर और प्रथम मंजिल पर दुकानें किराऐ पर दी जा रही है। शेष दो मंजिल और उसके ऊपर होटल व रेस्टोरेंट चलाया जाएगा। यानि 900 वर्गगज भूमि पर रेलवे और कंपनी दोनों कमाएंगे। सवाल उठता है कि पीपीपी माॅडल पर क्या अजमेर शहर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में रेलवे की तरह कार्य नहीं हो सकते? जो नगर निगम और अजमेर विकास प्राधिकरण मुख्य मार्गों पर व्यवसायिक मानचित्र भी स्वीकृत नहीं कर रहे हैं। वहीं रेलवे ने गांधी भवन चैराहे के निकट दस मंजिला बिल्डिंग खड़ी कर दी। चाहे शहर के मास्टर प्लान की समस्या हो या फिर प्रमुख मार्गों की चैड़ाई, सभी समस्याओं का समाधान करने में अजमेर के जनप्रतिनिधि पूरी तरह विफल रहे हैं। विधायक बन कर मंत्री बने जनप्रतिनिधि पचास हजार की नाली निर्माण के उद्घाटन से ही खुश है। आज पूरे शहर में अवैध निर्माणों की बाढ़ आई हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि अजमेर कैसे स्मार्ट बनेगा।
बिजली के पोल पर टंगा है बोर्डः
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में स्मार्ट पार्किंग का भी उल्लेख है यानि भीड़ वाले बाजारों में मल्टीस्टोरी पार्किंग बनाकर नागरिकों को सुविधा दी जाए। लेकिन दो साल गुजरने के बाद भी स्मार्ट पार्किग का कोई काम नहीं हुआ है। इसके बजाए यातायात पुलिस ने स्मार्ट सिटी के तहत प्राइवेट पार्किंग का एक बोर्ड महावीर सर्किल चैराहे के निकट एक बिजली के खम्भे पर टांग दिया है। इस बोर्ड पर गंज से लेकर देहली गेट तक के बीच जितने भी प्राइवेट पार्किंग स्थल हैं, उनका उल्लेख है। यानि स्मार्ट सिटी में प्राइवेट पार्किंग को ही फिलहाल स्मार्ट पार्किंग मान लिया गया है।
एस.पी.मित्तल) (01-08-18)
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