तो आरएएस प्री की परीक्षा में पास हो गए आयोग अध्यक्ष दीपक उप्रेती। अब अटके पड़े मामलों को जल्द निपटाएं।
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5 अगस्त को राजस्थान भर में आरएएस-प्री 2018 की परीक्षा शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गई। एक हजार चार सौ 54 परीक्षा केन्द्रों में से कहीं से भी शिकायत नहीं मिली। आरएएस के 1017 पदों के लिए कोई पौने पांच लाख अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी है। हालांकि सख्ती की वजह से केन्द्रों पर परीक्षार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। लेकिन अनुभवी परीक्षार्थियों ने सख्ती को सहन किया। इस परीक्षा की वजह से प्रदेश भर में दोपहर एक बजे तक इंटरनेट की सेवाएं भी बंद रही। इंटरनेट बंद होने के अब प्रदेश के नागरिक आदि हो गए हैं। 14 और 15 जुलाई को भी कांस्टेबल परीक्षा के लिए दोनों दिन राजस्थान में नेट बंद रखा गया था। प्रदेशवासियों को पता होगा कि जब भी कोई बड़ी परीक्षा होगी तब नेट बंद होगा। परीक्षा लेने वाली एजेंसी और राज्य सरकार को लोगों की परेशानी से कोई सरोकार नहीं है। गंभीर बात तो यह है कि सरकार यह मानती ही नहीं कि उसने नेट बंदी के आदेश दिए हैं। वहीं परीक्षा लेने वाला संस्थान कहता है कि नेट बंदी का निर्णय जिला प्रशासन पर छोड़ दिया है। इस तरह की बातें कर सरकार में बैठे लोग प्रदेश की जनता को बेवकूफ समझते हैं। जो लोग सरकार चला रहे हैं उन्हें पता होगा कि चार माह बाद चुनाव होने हैं। जिस जनता को आज बेवकूफ समझा जा रहा है व बहुत समझदार है।
उप्रेती पासः
आरएएस प्री की परीक्षा शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न करवाने के साथ ही राजस्थान लोग सेवा आयोग के अध्यक्ष दीपक उप्रेती पास हो गए हैं। प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) का पद छोड़ कर उप्रेती ने 23 जुलाई को ही आयोग अध्यक्ष का पद संभाला था। तब प्रश्न पत्र भी नहीं छपे थे, लेकिन 5 अगस्त को ही परीक्षा करवाने की चुनौती को उप्रेती ने स्वीकार किया। प्रेस से न केवल रात और दिन गोपनीय तरीके से पांच लाख प्रश्न पत्र छपवाए बल्कि कुशलता के साथ प्रदेशभर के परीक्षा केन्द्रों पर भिजवाएं। उप्रेती ने गृह सचिव के अनुभव और रुतबके का पूरा उपयोग किया। उप्रेती ने प्रदेश के अधिकांश कलेक्टर और एसपी से सीधा संवाद रखा ताकि परीक्षा में कोई गड़बड़ी न हों। इसमें कोई दो राय नहीं की इस परीक्षा के शांतिपूर्ण सम्पन्न हो जाने से 5 लाख अभ्यर्थियों ने भी राहत महसूस की है। इसके लिए उप्रेती को शाबाशी मिलनी ही चाहिए। लेकिन इसके साथ ही उप्रेती को आयोग के बिगड़े हुए ढर्रे को सुधाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। आयोग की दोषपूर्ण नीतियों की वजह से ही अनेक परीक्षाएं अटकी हुई है। सैकंड ग्रेड के अभ्यर्थियों की शिक्षक के रूप में नियुक्ति हो चुकी है, लेकिन कोर्ट में मामला लम्बित होने की वजह से मामला अटक गया है। आयोग को उलझे हुए कामों को सुलझाने के लिए एक टास्क फोर्स बनानी चाहिए। आयोग की वजह से लाखों युवकों का भविष्य दाव पर लगा हुआ है।