टिकिट के दावेदारों से विधानसभा वार अकेले में मिलें सचिन पायलट और वसुंधरा राजे। ख्वाहिश भी पूरी होगी और समस्या का समाधान भी।
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नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में टिकिट के दावेदार अपने अपने नजरिए से जुगाड़ में लगे हैं। भाजपा के जहां सभी 160 विधायक हर हाल में फिर से टिकिट चाहते हैं तो वहीं कांग्रेस में भी हर विधानसभा क्षेत्र में लम्बी लाइन लगी हुई है। अशोक गहलोत प्रदेश की जनता के समक्ष चाहे जितना चेहरा रख लें, लेकिन माना यही जा रहा है कि प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट का फैसला ही अंतिम होगा। इसी प्रकार केन्द्रीय नेतृत्व से चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करवा कर वसुंधरा राजे ने भाजपा में अपना दबदबा साबित कर दिया है। यही वजह है कि टिकिट के दावेदार किसी न किसी तिकड़म से एक बार अकेले में सचिन पायलट और वसुंधरा राजे से मिलना चाहते हैं। टिकिट के दावेदारों को भी पता है कि जातीय समीकरण और किस्मत के बल पर ही टिकिट मिलेगा, लेकिन पायलट और राजे से मिलने के लिए दावेदार पूरी भाग दौड़ कर रहे हैं। वसुंधरा राजे भले ही गौरव यात्रा निकाल रही हैं, लेकिन उन्हें भी पता है कि टिकिट पाने वाले किस प्रकार लाइन में खडे़ हैं। वहीं पायलट जयपुर में हो या दिल्ली में उनका पीछा लगातार किया जा रहा है। पायलट और राजे माने या नहीं, सिर्फ मिलने के लिए काफी समय और पैसा खर्च हो रहा है। अच्छा हो कि दोनों नेता अपने स्तर पर दावेदारों को एक एक बार अकेले में मिलने का अवसर दें दे। भले ही उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया को जारी रखा जाए और निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही उम्मीदवार की घोषणा हो, लेकिन दावेदार इससे संतुष्ट हो जाएगा कि उसने अपनी बात शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचा दी है। वसुंधरा राजे चाहें तो गौरव यात्रा के दौरान ही विधानसभा वार दावेदारों को अकेले में मिलने का अवसर दे सकती हैं। इसी प्रकार पायलट भी जयपुर में तीन चार दिन का कैम्प लगा सकते हैं। इससे दोनों दलों की बहुत बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा। कार्यकर्ता इन नेताओं से मिलने के लिए जयपुर दिल्ली या गौरव यात्रा की जगहों पर भाग दौड़ नहीं करेगा। बड़े नेता उम्मीदवारों की घोषणा तक भीड़ से भी बचे रहेंगे। जो नेता टिकिट दिलवाने का झांसा दे रहे हैं उनका प्रभाव भी कम हो जाएगा। अपने वजूद को बनाए रखने के लिए कार्यकर्ता की मानसिक स्थिति कैसी होतीे है, इसका अनुभव हाल ही में वसुंधरा राजे और सचिन पायलट दोनों को हुआ है। ऐसे इन दोनों नेताओं को विधानसभा स्तर के कार्यकर्ता की जगह खुद हो खड़ा करके विचार करना चाहिए। अपने दल के कार्यकर्ता से अकेले में मिलने से कोई हर्ज भी नहीं है। टिकिट का दावेदार भले ही अपने आवदेन दस कमेटियों के समक्ष रख दें, लेकिन उसे संतुष्टि तो राजे और पायलट से मिलने पर ही होगी।