दाढ़ी रख कर टोपी-कुर्ता पहन लेने से कोई मुसलमान नहीं होता।
ईद पर ख्वाजा साहब की दरगाह के दीवान आबेदीन की खरी खरी।
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22 अगस्त को ईद के मौके पर अजमेर स्थित विश्वविख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दीवान और सज्जादानशीन सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने अपना संदेश दिया है। अपने संदेश में दीवान ने आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हुए मुसलमानों के लिए खरी खरी बात कही। टोपी कुर्ता पहन लेने का नाम मुसलमान नहीं है, बल्कि जिसके अंदर लोगों के खून की हिफाजत करने का जज्बा होगा और जो नाहक कत्ल रोकने वाला होगा, वहीं मुसलमान होगा। मजहब-ए-इस्लाम इसी की तालीम देता है। हर मुस्लिम अपने इस्लाम को अच्छी तरह समझे, ताकि और मुस्लिमों के सामने अपने इस्लाम की सही तस्वीर पेश कर सके। आतंकवाद के साथ इस्लाम का नाम लेना मुसलमानों का अपमान है ऐसा करने वाले न सिर्फ इस्लाम की शिक्षाओं और उसके इतिहास के बारे में जानकारी नहीं है, बल्कि वे लोग इस्लाम धर्म को आम लोगों के बीच बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं। इस्लाम शांति भाईचारा मिलनसार से जीवन यापन करने की शिक्षा देता है। इस्लाम के अंतिम पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने संदेश दिए हैं कि इस्लाम धर्म के मानने वाले अनुयायी इस्लाम के उपदेशों नियमों की अनुपालना तो पूरे मनोयोग के साथ करें, पर किसी दूसरे धर्म के बारे में किसी प्रकार का अनर्गल प्रचार या असम्मान की दृष्टि नहीं रखें। उन्होंने कहा कि इस दौर में इस्लाम को आतंकवाद से इस तरह जोड़ दिया गया है कि अगर कोई व्यक्ति को किसी ग़ैर मुस्लिम के सामने इस्लाम का शब्द ही बोलता है तो उसके मन में तुरंत आतंकवाद का ख्याल घूमने लगता है जैसे कि आतंकवाद का माआज अल्लाह इस्लाम का दूसरा नाम है जबकि हिंसा और इस्लाम में आग और पानी जैसा बैर है। उनका तर्क था कि जहां आतंकवाद है, वहां इस्लाम का नामो निशा भी नहीं है।