तो वेदांता ग्रुप करेगा ख्वाजा साहब की दरगाह को स्वर्ण मंदिर जैसा विकसित।

तो वेदांता ग्रुप करेगा ख्वाजा साहब की दरगाह को स्वर्ण मंदिर जैसा विकसित। क्या दरगाह परिसर से खादिमों के हुजरे हट पाएंगे?
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यूं तो स्मार्ट सिटी के नाम पर अजमेर में कोई दो हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के विकास की जिम्मेदारी वेदांता ग्रुप ने ली है। यह वहीं वेदांता ग्रुप है जिसने देश की कमाई वाली हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड कंपनी को सरकार से ले लिया और जमीन को चीर कर अभ्रक जैसी मूल्यवान धातु निकाल रहा है। अजमेर शहर की सीमा से सटे गांवों में भी वेदांता ग्रुप खनन का कार्य कर रहा है, इसलिए सामाजिक सरोकार के तहत वेदांता समूह ने ख्वाजा साहब की दरगाह के विकास की भी जिम्मेदारी ली है। 1 सितम्बर को केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की उपस्थिति में वेदांता ग्रुप के फाइनेंस आॅफिसर अमिताभ गुप्ता और दरगाह कमेटी के नाजिम आईबी पीरजादा के बीच एक एमओयू साइन हुआ है। इसके अंतर्गत वेदांता ग्रुप 5 करोड़ 58 लाख के विकास कार्य करवाएगा। इसी अवसर पर नकवी ने कहा कि अब ख्वाजा साहब की दरगाह का विकास भी सिक्खों के प्रमुख धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर की तरह होगा। नकवी ने यह नहीं बताया कि मात्र साढ़े पांच करोड़ की राशि से ख्वाजा साहब की दरगाह स्वर्ण मंदिर जैसी कैसे बनेगी तथा इसमें उनके अल्पसंख्यक मंत्रालय का क्या योगदान होगा? मालूम हो कि दरगाह कमेटी नकवी के मंत्रालय के अधीन ही काम करती है। दरगाह कमेटी के पास मुस्लिम अकीदतमंदों के प्रस्ताव भी है। जो दरगाह विकास से जुड़े हैं।
फूलों से बन रही है खादः
ख्वाजा साहब की पवित्र मजार पर चढ़ने वाले फूलों से अब खाद भी बनाई जा रही है। यह कार्य भी वेदांता ग्रुप ने ही शुरू किया है। गु्रप का कहना है कि खाद की पैकिंग कर दरगाह आने वाले जायरीनों को ही दी जाएगी ताकि वे अपने घरों के पेड़ पौधों में इस्तेमाल कर सकें। इसके लिए ग्रुप ने दरगाह कमेटी की कायड़ विश्राम स्थली पर मशीन भी लगाई है। मजार पर पेश हुए फूलों के प्रति जायरीन की बेहद अकीदत होती है। दरगाह के खादिम फूलों की पत्तियों को तबर्रुक के तौर पर भी देते हैं।
हट पाएंगे हुजरे?
केन्द्रीय मंत्री नकवी ने कह तो दिया कि दरगाह का विकास स्वर्ण मंदिर की तरह किया जाएगा, लेकिन सवाल उठता है कि क्या दरगाह परिसर में खादिमों के लिए बैठने का जो स्थान आरक्षित है उसे हटाया जा सकेगा? दरगाह में जब 6 दिनों तक सालाना उर्स होता है तब भी आरक्षित स्थान कायम रहते हैं। दरगाह परिसर में कालीन बिछा कर अपनी पेटी (लोहे का बड़ा बाॅक्स) रखने की पुरानी परंपरा है। शायद इस अधिकार को कोई भी खादिम छोड़ना नहीं चाहेगा। हालांकि वेदांता ग्रुप के एमओयू पर खादिमों की दोनों संस्था अंजुमन सैय्यद जादगान और शेखजादगान के पदाधिकारियों के भी हस्ताक्षर हैं, लेकिन किसी भी पदाधिकारी में इतनी हिम्मत नहीं कि वे अपने ही समुदाय के विपरीत कोई समझौता कर लें। हालांकि खादिम समुदाय भी मानता है कि उर्स और अन्य खास मौकों पर आने वाले लाखों जायरीन को दरगाह परिसर में असुविधा होती है। अब वर्ष भर दरगाह में भीड़ लगी रहती है।
एस.पी.मित्तल) (02-09-18)
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