राजनीतिक दलों के बगैर ही हो गया शांतिपूर्ण भारत बंद। राजनेता जनता के इस मूड को समझें।
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आमतौर पर भारत या प्रदेश में बंद राजनीतिक कारणों से राजनीतिक दल ही करवाते हैं, लेकिन 6 सितम्बर को राजनीतिक दलों के बगैर ही शांतिपूर्ण तरीके से भारत बंद हो गया। अजमेर सहित देश के प्रमुख शहरों में न तो मोटे डंडे और नंगी तलवारें लहरी। असल में देश के लोगों ने 6 सितम्बर को बंद रखने का मूड पहले से ही बना लिया था। यानि बिना किसी दबाव अथवा आग्रह के लोगों ने स्वेच्छा से बंद में सहयोग किया। सामान्य वर्ग के सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी स्वेच्छा से दफ्तर नहीं गए। सवाल यह नहीं है कि मुसलमान और ओबीसी वाले सामान्य वर्ग ने किसी एक्ट का विरोध किया है? सवाल यह है कि जब सबका साथ सबका विकास का नारा दिया गया है तो फिर आरोपों की जांच के बगैर ही गिरफ्तारी क्यों? दहेज प्रताड़ना, गैंगरेप जैसे प्रकरणों में भी आरोपों की जांच के बाद ही गिरफ्तारी होती है। जांच एजेंसियां पर्याप्त सबूत जुटाने के बाद ही आरोपी को गिरफ्तार करती हैं। देश में मजबूत होते लोकतंत्र में जाति के आधार पर किसी को भी अपमानित नहीं किया जा सकता। इसलिए एससी एसटी एक्ट बनाया गया, जिसके सख्त प्रावधान है, लेकिन न्याय की भी मांग है कि आरोपों की जांच भी होनी चाहिए। लोकतंत्र में तो एससी एसटी वर्ग के लोग भी आईएएस और आईपीएस जैसे बड़े पदों पर बैठे हैं और राजनीति में मंत्री, मुख्यमंत्री, केन्द्रीयमंत्री यहां तक देश के राष्ट्रपति तक किसी वर्ग के हैं। क्या ऐसे में किसी की हिम्मत है तो आरोपों की जांच में कौताही बरते। आज की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था में किसी की भी हिम्मत नहीं जो आरोपी को बचा सके। संविधान में जब सभी को समान अधिकार है तो फिर किसी के साथ अन्याय भी नहीं होना चाहिए। 6 सितम्बर के भारत बंद से देश के राजनेताओं को भी सबक लेना चाहिए कि वे ऐसा कोई कार्य नहीं करे, जिससे समाज का एक वर्ग नाराज होता हो। इसे राजनेताओं की मजबूरी ही कहा जाएगा कि 6 सितम्बर के भारत बंद के समर्थन में कोई भी सामने नहीं आया। ऐसा लगा कि राजनेताओं को सामान्य वर्ग से कोई सरोकार ही नहीं है। ऐसे मुसीबत के समय में इस वर्ग को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। कांग्रेस को यह नहीं समझना चाहिए कि यह बंद भाजपा के खिलाफ है, क्योंकि जब एक्ट में संशोधन वाला प्रस्ताव संसद में सरकार ने रखा, तब कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी समर्थन किया था। ऐसे में कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।
बनी रहे सामाजिक समरसताः
भारत के पड़ौसी देशों के जो हालात है उन्हें देखते हुए भारत में सामाजिक समरसता बनी रहनी चाहिए। कोई किसी भी जाति या वर्ग हो, सभी को एकजुटता दिखानी चाहिए। किन्हीं कारणों से यदि समाज में विभाजन होता है तो उन विदेशी ताकतों को बल मिलेगा जो हमारी एकता और अखंडता को तोड़ना चाहते हैं।